प्रीति जैन- इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने हाल ही में हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें एक बिंदु काफी अहम है, जिस पर अधिकांश लोगों का ध्यान नहीं होता, और वे हैं, नॉनस्टिक कुक वेयर। गाइडलाइन में खाना पकाने के लिए नॉन-स्टिक, पॉलिश वाले बर्तनों के बजाय मिट्टी और आयरन के बर्तन इस्तेमाल करने के निर्देश दिए हैं। इसके मुताबिक, मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने के लिए थोड़ी मात्रा में ऑयल की जरूरत होती है साथ ही खाने की न्यूट्रीशियन वैल्यू बढ़ती है। वहीं, नॉन-स्टिक बर्तन टेफ्लॉन मेटेरियल से कोटेड होते हैं। इनमें 170 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान पर खाना पकाने से यह खाने में घुलता है।
यह बात सही है कि नॉन-स्टिक बर्तनों में तेल कम लगता है और इसे साफ करना आसान है, लेकिन यह हानिकारक भी होते हैं। इसमें कोटिंग के लिए पॉलीटेट्राफ्लूरो एथिलीन (पीटीएफई) का उपयोग किया जाता है। यही कारण है कि नॉन-स्टिक बर्तनों में खाना स्टिक यानी चिपकता नहीं है। इसे टेफ्लॉन कहा जाता है, जिसे पेरफ्लूओरूक्टेनोइक एसिड (पीएफओए) से तैयार किया जाता है। यह एक प्रकार का केमिकल होता है।
आईसीएमआर का कहना है कि टेफ्लॉन कुकवेयर में 170 डिग्री सेल्सियस से अधिक के उच्च तापमान पर पकाए जाने पर भोजन में बड़ी मात्रा में जहरीले धुएं और हानिकारक रसायनों को छोड़ सकते हैं। हालांकि अब अधिकांश कंपनियां ने पेरफ्लूओरूक्टेनोइक एसिड (पीएफओए) को अपने बर्तनों से हटाने की बात मान ली है। ज्यादा गर्म नॉन-स्टिक बर्तन हानिकारक धुआं बनाता है, जिससे फेफड़े पर असर पड़ता है और उससे पोलिमर फ्यूम फीवर का खतरा बढ़ जाता है। ज्यादा तेज गर्म हो जाने पर खाने के पोषक तत्व भी खत्म हो जाते हैं। - डॉ. अलका दुबे, न्यूट्रिशनिस्ट
मैंने नॉन-स्टिक के हल्की क्वालिटी के बर्तन का एक्सपेरिमेंट करके देखा। मैंने उसे गैस पर गर्म करने रखा और पानी डाला, तो पानी का स्वाद कड़वा हो गया। यदि नॉन-स्टिक इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर हाई ग्रेड कुकवेयर यूज करें और हमेशा वुडन स्पैचुला ही उसमें लगाएं। नॉन-स्टिक की हल्की क्वालिटी लंबे समय में ब्रेन, किडनी व लिवर को प्रभावित करती है। मिट्टी के ब्लैक कुकवेयर को एक से दो दिन पानी में डुबोकर रखें, फिर तीसरे दिन प्याज के साथ उसमें पानी उबालें और फिर चौथे, पांचवें दिन सादा पानी उसमें उबाल लें ताकि मिट्टी के भीतर के हैवी मेटल्स भी निकल जाएं। -एन. गणेश, ऑन्कोजेनेटिक्स