Garima Vishwakarma
3 Dec 2025
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Manisha Dhanwani
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महाराष्ट्र के एक साधारण परिवार से आने वाले 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने ऐसा काम कर दिखाया है, जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। काशी की पवित्र धरती पर उन्होंने वैदिक परंपरा का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिसने युवाओं को भारतीय संस्कृति के प्रति और अधिक जोड़ दिया है।
देवव्रत ने काशी के रामघाट स्थित सांग्वेद विद्यालय में शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के लगभग 2000 मंत्रों वाले ‘दण्डकर्म पारायणम्’ का पाठ लगातार 50 दिनों तक किया। हर दिन सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक वे बिना किसी रुकावट के मंत्रों का उच्चारण करते रहे। ‘दण्डक्रम’ का मतलब है हर मंत्र को 11 अलग-अलग तरीकों से दोहराना, जो बेहद कठिन साधना मानी जाती है।
इतिहासकारों और वैदिक विद्वानों के अनुसार, ऐसा साधना क्रम आखिरी बार करीब 200 साल पहले नासिक के प्रसिद्ध वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव द्वारा पूरा किया गया था। इस तरह देवव्रत ने सदियों बाद इस परंपरा को फिर से जीवित कर दिया है।
देवव्रत की उपलब्धि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रभावित हुए। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देवव्रत को शुभकामनाएं दीं और कहा कि उनका समर्पण आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करेगा।
वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनकी इस तपस्या को आध्यात्मिक जगत के लिए प्रेरणा का दीप बताया।
देवव्रत महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक ब्राह्मण परिवार से हैं। उनके पिता महेश चंद्रकांत रेखे स्वयं विद्वान हैं और बचपन से ही उनके गुरु रहे हैं। मात्र 5 साल की उम्र से देवव्रत वेद मंत्रों का अभ्यास कर रहे हैं। लगातार मेहनत और अनुशासन से उन्होंने कम उम्र में ही शुक्ल यजुर्वेद की पूरी शाखा कंठस्थ कर ली, जिसके बाद उन्हें ‘वेदमूर्ति’ की उपाधि दी गई।