
प्रवीण श्रीवास्तव भोपाल। एम्स भोपाल एंटीबायोटिक के प्रभाव पर लगातार रिसर्च कर रहा है। साथ ही अस्पताल में उपयोग हो रही एंटीबायोटिक दवाओं की संवेदनशीलता की रिपोर्ट (एंटीबायोग्राम) सार्वजनिक भी कर रहा है। यही नहीं इस रिपोर्ट को हर छह महीने में अपडेट भी किया जाता है।
इस तरह एम्स, देश का पहला ऐसा संस्थान है, जो एंटीबायोग्राम को जारी कर रहा है। एम्स भोपाल के माइक्रो बायोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. देबाशीष बिस्वास बताते हैं कि एंटीबायोग्राम वह तकनीक है, जिससे एंटीबायोटिक की संवेदनशीलता की जानकारी मिलती है। उनके अनुसार, लगातार उपयोग होने से एंटीबायोटिक का असर कम हो जाता है। ऐसे में एम्स अस्पताल में उपयोग हो रहे एंटीबायोटिक की जांच कर रिपोर्ट हर छह महीने में अपडेट करता है। इससे डॉक्टरों को पता होता है कि किस एंटीबायोटिक का असर कम हो रहा है और उन्हें इसके बाद किसका इस्तेमाल करना है और किसका नहीं।
एंटीबायोटिक का ऐसा हो रहा यूज
एनएचएम के पूर्व संचालक डॉ. पंकज शुक्ला ने बताया कि कई डॉक्टर एक मरीज को दिन भर में पांच एंटीबायोटिक दे देते हैं। एक दवा काम न आए, तो दूसरी और तीसरी दवाएं तक दी जाती हैं। ऐसे में कुछ समय बाद मरीज पर इसका असर होना खत्म हो जाता है। बीते साल एनएचएम की पड़ताल में भी सामने आया था कि भर्ती मरीजों को कौन-सा इन्फेक्शन है, ये पता लगाने के लिए जांचें कराए बिना ही एंटीबायोटिक दिए जा रहे हैं।
दवाएं कितनी असरदार एंटीबायोटिक (प्रतिशत में)
कोलिस्टिन 89
एमीप्रनम 70
पिपरासीलिन 64
क्लोरोमफेनिकोल 63
जेन्टामयसिन 60
अजीथ्रोमयसिन 59
सेफ्टजीडीम 52
लेवोफ्लोक्सीसिन 52
मेरिपेनम 48
सिफेक्सोन 46
कोट्राइमोक्सेजोल 42
सिफेपाइम 40
कई एंटीबायोटिक बेअसर
- चार साल पहले एम्स ने एंटीबायोटिक के कम हो रहे असर पर शोध किया था। इसमें पता चला था कि नए एंटीबायोटिक का असर खत्म हो रहा है। वहीं सालों पहले अप्रभावी हो चुके एंटीबायोटिक्स फिर से प्रभावी हो गए हैं।
- ज्यादा उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक जैसे-एंपिसिलीन, एमॉक्सीसिलीन, सिफजोलिन, सिफ्रिएक्सोन आदि का असर 50 प्रतिशत रह गया है। वहीं सालों पहले बंद की गई क्लोरेम्फेनिकूल का असर 63 प्रतिशत तक रहा है।