
बेंगलुरु। दुनियाभर के देशों की निगाहें भारतीय मून मिशन चंद्रयान-3 पर है। भारत के महत्वाकांक्षी मून मिशन ने एक और महत्वपूर्ण पड़ाव को पार कर लिया है। चंद्रयान-3 अपने मिशन के सबसे करीब पहुंच गया है। चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की पांचवी और अंतिम कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर लिया है।
अब आज यानी 17 अगस्त को इसरो ने चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल को लैंडर मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया है। सेपरेशन के बाद लैंडर मॉड्यूल ने प्रोपल्शन मॉड्यूल से कहा- ‘थैंक्स फॉर द राइड मेट’। इसरों ने बताया कि कल लगभग 4 बजे के लिए नियोजित डीबूस्टिंग पर लैंडिंग मॉड्यूल थोड़ी निचली कक्षा में उतरने के लिए तैयार है। शुक्रवार करे लैंडर को डीबूस्टिंग के जरिए थोड़ी निचली कक्षा में लाया जाएगा।
चंद्रमा की सीमा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी
बता दें कि अब चंद्रयान-3 अपने मिशन के बहुत करीब पहुंच गया है। चंद्रयान-3 चांद से करीब 150 किमी ही दूर रह गया है। 16 अगस्त की सुबह ISRO ने चांद की सतह से दूरी कम करने के लिए एक बार फिर कक्षा घटा दी। चंद्रयान-3 को पांचवें ऑर्बिट 153 किमी x 163 किमी की कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। इसके साथ ही चंद्रमा की सीमा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हो गई। प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल क्या है? अब प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में 3-6 महीने रहकर धरती से आने वाले रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा।
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क्या हैं प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल ?
अब चंद्रयान के प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर अलग होने के लिए तैयार हैं। दरअसल, चंद्रयान-3 में एक प्रोपल्शन या प्रणोदक मॉड्यूल है। इसका मुख्य काम लैंडर को चंद्रमा के करीब लेकर जाने का था। लैंडर में एक रोवर शामिल हैं। भारत के तीसरे चंद्र मिशन का मुख्य उद्देश्य लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारना है। चंद्रयान-2 मिशन में लैंडर पर नियंत्रण खो देने की वजह से उसकी सॉफ्ट लैंडिंग की जगह क्रैश लैंडिंग हो गई थी। इसके कारण लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में किया था प्रवेश
22 दिन के सफर के बाद पांच अगस्त को शाम करीब 7:15 बजे चंद्रयान ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था। उसके बाद अब तक इसकी दो बार ऑर्बिट बदली जा चुकी है।
- 6 अगस्त : पहली बार चंद्रयान-3 की ऑर्बिट घटाई गई। जिसके बाद चंद्रयान 170 km x 4313 km की ऑर्बिट में घूम रहा था। इसी दिन चंद्रयान ने चांद की पहली तस्वीरें जारी की थीं।
- 9 अगस्त : दूसरी बार चंद्रयान-3 की ऑर्बिट घटाई गई। जिसके बाद चंद्रयान 174 km x 1437 km किलोमीटर वाली छोटी अंडाकार कक्षा में घूम रहा था।
आगे क्या होगा
18 और 20 अगस्त : डीऑर्बिटिंग होगी यानी चांद के ऑर्बिट की दूरी को कम किया जाएगा। लैंडर मॉड्यूल 100×35 KM के ऑर्बिट में जाएगा।
23 अगस्त : शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी।
देखें चांद की पहली तस्वीर
चंद्रयान के कैमरों ने चांद की तस्वीरें भी कैप्चर की थी। इसरो ने इसका एक वीडियो भी शेयर किया है। इन तस्वीरों में चंद्रमा के क्रेटर्स साफ-साफ दिख रहे हैं।
चंद्रयान-3 के सभी सिस्टम दुरुस्त : ISRO
अगले 17 दिन तक चंद्रयान-3 उसी तरह धीरे-धीरे चंद्रमा की ओर बढ़ेगा। लॉन्च के बाद तीन हफ्तों के दौरान पांच चरणों में इसरो ने इसे पृथ्वी से दूर भेजा था। जिसके बाद 1 अगस्त को इसे पृथ्वी की ऑर्बिट से चंद्रमा की ओर भेजा गया था। इसरो ने ट्वीट करके कहा कि, चंद्रयान-3 के सभी सिस्टम दुरुस्त हैं। ISTRAC बेंगलुरु में मौजूद मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (MOX) से लगातार निगरानी की जा रही है। 14 जुलाई को चंद्रयान-3 को 170 km x 36,500 km के ऑर्बिट में छोड़ा गया था। 23 अगस्त को लैंडिंग से पहले चंद्रयान 4 बार अपनी ऑर्बिट बदलेगा।
50 दिन की यात्रा के बाद कराई जाएगी लैंडिंग
करीब 50 दिन की यात्रा के बाद 23-24 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी। अगर दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिग होती है तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। यह मिशन 615 करोड़ की लागत से तैयार हुआ है। ‘चंद्रयान-3’ को भेजने के लिए LVM3-M4 रॉकेट का इस्तेमाल किया जा रहा है। स्पेस एजेंसी इसरो ने इसी रॉकेट से चंद्रयान-2 को लॉन्च किया था। इसे पहले GSLV MK-III के नाम से जाना जाता था।
कब-कब लॉन्च हुए चंद्रयान?
- चंद्रयान-1 : साल 2008
- चंद्रयान-2 : साल 2019
- चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जबकि चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर के साथ-साथ लैंडर और रोवर भी थे। वहीं चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर नहीं होगा, सिर्फ लैंडर और रोवर ही रहेंगे।
- इस बार भी इसरो ने लैंडर का नाम ‘विक्रम’ और रोवर का ‘प्रज्ञान’ रखा है। लैंडर और रोवर के चंद्रयान-2 में भी यही नाम थे।
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