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हर साल 8 दिसंबर को बौद्ध समुदाय बोधि दिवस मनाता है। यह दिन उस महान क्षण की याद दिलाता है जब सिद्धार्थ गौतम ने पीपल के पेड़ (बोधि वृक्ष) के नीचे ध्यान करके लगभग 2500 साल पहले आत्मज्ञान प्राप्त किया और ‘बुद्ध’ बने। बोधि का अर्थ है ज्ञानोदय या जागृति और यह दिन केवल स्मरण का नहीं, बल्कि ध्यान, प्रार्थना और जीवन में सकारात्मक मार्ग अपनाने का अवसर भी है।
सिद्धार्थ गौतम का जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था। समाज और जीवन की पीड़ा को देखकर उन्होंने तपस्या और ध्यान के माध्यम से मानवता के लिए मार्ग खोजने का निश्चय किया। वर्षों की साधना और आत्म-अन्वेषण के बाद, उन्होंने बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए परम ज्ञान प्राप्त किया। यही क्षण उन्हें ‘बुद्ध’ बनाता है यानी जागरूक और माया-मोह से मुक्त व्यक्ति।
इस दिन बौद्ध धर्मावलंबी ध्यान, प्रार्थना और बुद्ध की शिक्षाओं पर चिंतन करते हैं। लोग दीपक जलाते हैं जो अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक है। जापान में इसे 8 दिसंबर को मनाया जाता है, जबकि चीन, कोरिया और वियतनाम में चंद्र कैलेंडर के अनुसार जनवरी में यह पर्व आता है। लोग इस अवसर पर करुणा, संयम और सकारात्मक सोच को अपनाने की प्रेरणा लेते हैं।
बोधि दिवस हमें यह सिखाता है कि ज्ञान और जागरूकता सबसे बड़ा उपहार है। जीवन में कठिनाइयां आएंगी, लेकिन ध्यान, धैर्य और सही सोच से हम अज्ञान और दुख से मुक्त होकर जीवन को उज्ज्वल बना सकते हैं। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम अपने और दूसरों के जीवन में सुधार और सकारात्मक बदलाव लाएं और ज्ञान का प्रकाश फैलाएं।