Aakash Waghmare
22 Dec 2025
भोपाल। कांग्रेस वर्किंग कमेटी सदस्य बीके हरिप्रसाद ने कहा कि मोदी सरकार ने सुधार के नाम पर लोकसभा में एक और बिल पास कर दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना मनरेगा को खत्म करने का काम किया है। यह महात्मा गांधी के विचारों पर सीधा हमला है और देश के सबसे गरीब नागरिकों से काम का संवैधानिक अधिकार छीनने की सोची-समझी साजिश है। उन्होंने कहा कि मनरेगा, गांधीजी के ग्राम स्वराज, काम की गरिमा और विकेन्द्रीकृत विकास की अवधारणा का जीवंत उदाहरण रहा है। लेकिन केंद्र सरकार ने न केवल महात्मा गांधी का नाम हटाया, बल्कि 12 करोड़ से अधिक मजदूरों के अधिकारों को बेरहमी से कुचल दिया। पिछले दो दशकों से यह योजना करोड़ों ग्रामीण परिवारों के लिए जीवनरेखा रही है और कोविड-19 महामारी के दौरान यह सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा कवच साबित हुई।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से ही प्रधानमंत्री मोदी मनरेगा के खिलाफ रहे हैं और इसे कांग्रेस की नाकामी की निशानी कहा गया। पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने मनरेगा को व्यवस्थित रूप से कमजोर किया है। बजट में भारी कटौती, राज्यों के वैधानिक फंड रोकना, जॉब कार्ड रद्द करना और आधार आधारित भुगतान को अनिवार्य कर लगभग 7 करोड़ मजदूरों को योजना से बाहर कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप पिछले पांच वर्षों में मनरेगा में औसतन केवल 50–55 दिन का काम ही मिल पाया है।
हरिप्रसाद ने बताया कि मनरेगा, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार आधारित गारंटी थी, अब इसे एक सशर्त, केंद्र-नियंत्रित योजना में बदला जा रहा है। यह सुधार नहीं, बल्कि ग्रामीण गरीबों से संवैधानिक वादा छीनने की प्रक्रिया है। मनरेगा पूरी तरह केंद्र द्वारा वित्तपोषित थी, लेकिन अब मोदी सरकार राज्यों पर लगभग ₹50,000 करोड़ का बोझ डालना चाहती है, जबकि नियम, ब्रांडिंग और श्रेय केंद्र अपने पास रखेगा।