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अनुज मैना
भोपाल। हिंदी सिनेमा की चर्चित निर्माता, निर्देशक और लेखिका सीमा कपूर ने बताया कि आत्मकथा लिखने का विचार पहली बार मेरे जेहन में उस समय आया, जब मैंने अपना बच्चा खो दिया। इस घटना ने मेरे जीवन में-मेरी विचार प्रक्रिया पर बहुत गहरा असर डाला। वह मां के रूप में मेरा बहुत निजी स्तर का दुःख था। परिजन और अन्य लोग थे, लेकिन मैं यह दुःख उनके साथ अधिक गहराई में उतरकर साझा नहीं कर सकती थी, क्योंकि वे पहले ही बहुत परेशान थे। बच्चे से बिलगाव के दुःख से प्रेरित होकर मैंने लिखना शुरू किया। पहला अध्याय बच्चे को लिखे पत्र पर केंद्रित है...क्यों नहीं आए? और उसका जवाब भी मैंने ही स्वयं लिखा। अपने बच्चे से बिलगाव ने मुझे कहीं बहुत भीतर से तोड़ दिया था। इसी तबाव ने मुझे आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित किया।
शुरुआत में भावों को शब्दों में उतारने में कुछ दिक्कतें आईं, लेकिन जल्दी ही मैंने इस पर नियंत्रण पा लिया और भावनाओं का प्रवाह शब्दों में रूपांतरित होने लगा। अपनी आत्मकथा ‘यूं गुजरी है अब तलक’ के विमोचन के लिए भोपाल आई सीमा कपूर ने विस्तार से बातचीत की। उनकी आत्मकथा का विमोचन राजकमल प्रकाशन द्वारा हिंदी भवन में आयोजित ‘किताब उत्सव’ के अंतिम दिन किया गया। पीपुल्स अपडेट से बातचीत में उन्होंने अपने निजी जीवन, फिल्म मेकिंग, संघर्ष और रिश्तों पर विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-
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सीमा कपूर ने किताब के सबसे कठिन हिस्सों पर कहा, मेरे बच्चे का मिसकरेज, मेरी मां, पिता और ओम पुरी जी का खोना बेहद कठिन था। मृत्यु हमेशा मुझे प्रश्नों में डालती है, लोग कहां चले जाते हैं? उनसे दोबारा कभी संवाद क्यों संभव नहीं होता? यही पीड़ा लिखते समय सबसे भारी पड़ी। उन्होंने कहा कि आत्मकथा लिखते समय सबसे बड़ा अंतर्द्वंद यही था कि कितना सच लिखा जाए। कई सच्चाइयां ऐसी होती हैं, जिन्हें हम घरवालों से भी साझा नहीं करते और यहां उन्हें अजनबी पाठकों के सामने रखना पड़ा।
अपने वैवाहिक जीवन और ओम पुरी से रिश्ते पर वे कहती हैं, हम दोनों सक्षम थे, लेकिन रिश्तों में क्षमा जरूरी है। ओमजी ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी और मैंने क्षमा कर दिया। मां हमेशा कहती थीं कि गाली का जवाब गाली से मत दो। मैंने वही आदर्श अपनाया। उम्र बढ़ने के साथ इंसान को एक सच्चा साथी चाहिए, और हमने एक-दूसरे को उसी रूप में स्वीकार किया। वे कहती हैं कि ओम जी का संघर्ष युवाओं के लिए मिसाल है। वे हमेशा कहते थे-मेहनत, ईमानदारी और लगन से ही सफलता मिलती है। यही उनकी सबसे बड़ी सीख है।
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जानवरों के प्रति अपने लगाव पर सीमा कहती हैं कि मुझे यह संवेदनशीलता मां से मिली। मैंने कई बार घायल और बेसहारा जानवरों को अपनाया है। हाल ही में मैंने एक गिलहरी को बचाया, जो बिल्ली के मुंह से मिली थी, वह अब मेरे घर का हिस्सा है। 14 साल से एक डॉग भी मेरे साथ है, जो आज भी मेरे बिना रह नहीं पाता। यह सब मेरे पिछले जन्मों के रिश्ते जैसे लगते हैं। इनदिनों मैं एक महिला प्रधान फिल्म पर काम कर रही हूं।