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रायसेन की अनोखी परंपरा, गाल में त्रिशूल घुसाकर झूमते हैं भक्त, जीभ में छेद कर पहनते लोहे का…

रायसेन जिले के उदयपुरा में एक अनोखी परंपरा चली आ रही है, जिसे “बाना पहनना” कहा जाता है। हर साल इस परंपरा के दौरान भक्त माता की भक्ति में लीन होकर लोहे के त्रिशूल को गाल और जीभ में छेदकर पहनते हैं। यह एक ऐसा दृश्य होता है, जिसे देखकर कोई भी अचंभित रह जाए। इस भक्ति में अपने शरीर पर भारी लोहे के वाना को पहनकर नाचते-गाते हैं, लेकिन इस दौरान न तो उन्हें दर्द होता है, और न ही खून बहता है। यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है और यहां के भक्त इसे मां की शक्ति का प्रताप मानते हैं।

जवारे विसर्जन के दौरान की ये परंपरा

रायसेन जिले के उदयपुरा में हर साल एक विशिष्ट परंपरा के तहत भक्त “बाना पहनने” के लिए माता के जवारे विसर्जन के दौरान एकत्र होते हैं। इस दौरान कुछ भक्त लोहे का दस फीट लंबा और दस से पंद्रह किलो वजन का त्रिशूल (वाना) अपने गाल और जीभ में छेदकर पहनते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन भक्तों को न तो दर्द का अहसास होता है, न ही खून बहता है, और न ही किसी प्रकार की दवाओं की आवश्यकता होती है। भक्त मानते हैं कि यह मां की शक्ति का प्रताप है, और मात्र धूली लगाने से घाव भर जाता है और निशान मिट जाता है।

भक्ति भाव में लीन रहते हैं भक्त

नो दिनों तक अपने गहरे भक्ति भाव में लीन रहने के बाद जब भक्त यह त्रिशूल पहनते हैं तो उनका उत्साह और आस्था चरम पर होती है। पंडा और भक्तों का मानना है कि यह परंपरा मां शक्ति के आशीर्वाद से जुड़ी हुई है। वे इसे मां के साथ अपनी अद्वितीय भक्ति के रूप में मानते हैं और इस दौरान कोई भी दर्द या तकलीफ महसूस नहीं होती। इस परंपरा को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं, और यह स्थानीय समुदाय के लिए एक प्रमुख धार्मिक आयोजन बन चुका है।

ये आस्था है या अंधविश्वास

यह परंपरा न केवल भक्तों के बीच श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह कई सवाल भी खड़ा करती है। क्या यह आस्था है या अंधविश्वास? कुछ लोग इसे धार्मिक आस्था का हिस्सा मानते हैं, जबकि कुछ इसे अंधविश्वास की संज्ञा देते हैं। इसके बावजूद रायसेन जिले के भक्तों के बीच यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसमें गहरी श्रद्धा और विश्वास की भावना है।

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