जबलपुरमध्य प्रदेश

सरकारी वकीलों की नियुक्ति में आरक्षण ना देने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, MP हाई कोर्ट ने निरस्त की थी याचिका

जबलपुर। मध्य प्रदेश में सरकारी वकीलों की नियुक्ति में आरक्षण नियम लागू नहीं किए जाने के रवैये को चुनौती संबंधी मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इससे पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसे एकलपीठ ने निरस्त कर दिया था। इसलिए, हाई कोर्ट की युगलपीठ के समक्ष एकलपीठ के आदेश के विरुद्ध अपील दायर की गई।

आरक्षण की मांग को बताया बेमानी

न्यायाधीश शील नागू व न्यायमूर्ति अरुण कुमार शर्मा की युगलपीठ ने ये अपील इस टिप्पणी के साथ निरस्त कर दी थी कि कोर्ट सरकार को आरक्षण लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती। इसके अलावा सरकारी वकीलों के पद नियमित न होकर संविदा आधारित होते हैं, इसलिए भी आरक्षण की मांग बेमानी है।

सुप्रीम कोर्ट में 26 सितंबर को होगी सुनवाई

दरअसल, हाई कोर्ट के इसी आदेश के विरुद्ध ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है। OBC एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह व उदय कुमार साहू ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 26 सितंबर को निर्धारित की गई है।

इन शहरों में दूध विक्रेताओं को भेजा लीगल नोटिस

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे व सामाजिक कार्यकर्ता रजत भार्गव ने आरोप लगाया है कि जबलपुर, इंदौर, उज्जैन, भोपाल व ग्वालियर शहरों में दूध विक्रेता बिना एनओसी व लाइसेंस के दूध का व्यवसाय कर रहे हैं। मंच की ओर से वकील दिनेश उपाध्याय ने राज्य शासन को लीगल नोटिस भेजा है। जिसमें मांग की है कि अवैध रूप से दूध का व्यवसाय करने वालों पर उचित कार्रवाई करें। ऐसा नहीं किए जाने पर हाई कोर्ट में आवेदन दायर किया जाएगा। हाई कोर्ट ने पहले में जो दिशा-निर्देश जारी किए थे, उनकी रोशनी में इस तरह की मनमानी पर ठोस अंकुश लगाया जाना चाहिए।

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