Shivani Gupta
11 Dec 2025
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को को मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) को एक आदिवासी युवक की मौत की जांच के लिए तीन सदस्यीय SIT गठित करने का निर्देश दिया और इस घटना के सिलसिले में दर्ज आपराधिक मामले में एक राजनीतिक कार्यकर्ता को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी। हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने 30 अक्टूबर को राजनीतिक कार्यकर्ता गोविंद सिंह की अग्रिम जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं और एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 18 के तहत वैधानिक रोक इस मामले में लागू होती है।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक को नीलेश आदिवासी (21) की मौत की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्देश दिया। बेंच ने आदिवासी की मौत की वजह के संबंध में करीबी रिश्तेदारों से सामने आए दो अलग-अलग और विरोधाभासी बयानों का उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा फिर भी, मामले के तथ्य और परिस्थितियां निःसंदेह नीलेश आदिवासी की मृत्यु के कारण की निष्पक्ष, स्वतंत्र और तटस्थ जांच की आवश्यकता को दर्शाती हैं। हमें लगता है कि स्थानीय पुलिस प्राथमिकी संख्या की जांच को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने में सक्षम नहीं होगी।
बेंच ने कहा कि उसने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी व्यापक शक्तियों का प्रयोग किया और कार्यवाही के दायरे का विस्तार किया तथा कई निर्देश जारी किए हैं। नीलेश ने सिंह के खिलाफ एससी-एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया था, लेकिन बाद में दावा किया कि उन्हें यह शिकायत दर्ज कराने के लिए मजबूर किया गया था। शिकायत वापस लेने के कुछ ही समय बाद युवक ने आत्महत्या कर ली और उसकी मृत्यु के संबंध में सिंह के खिलाफ एससी-एसटी अधिनियम के तहत एक नया मामला दर्ज किया गया।
बेंच ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि दो दिनों के भीतर एसआईटी का गठन किया जाए और इसमें राज्य कैडर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) स्तर के दो अधिकारी शामिल किए जाएं, जो मध्यप्रदेश के मूल निवासी न हों, ताकि घटना के परस्पर विरोधी बयानों के बीच निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके। पीठ ने कहा कि एसआईटी में तीसरी अधिकारी एक महिला डीएसपी होनी चाहिए तथा एसआईटी मामले की शीघ्रता से जांच करे और एक महीने के भीतर इसे पूरा करना चाहिए।