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ईरान ने स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने को दी मंजूरी; इससे दुनिया और भारत के आयात पर क्या प्रभाव पड़ेगा, विस्तार से जानिए

मिडिल ईस्ट में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच ईरानी संसद ने स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने की मंजूरी दे दी है। अमेरिकी हवाई हमलों में ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर किए गए हमलों के बाद यह फैसला लिया गया है। यह कदम वैश्विक तेल आपूर्ति चेन के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है।

क्या है स्ट्रेट ऑफ होर्मुज

स्ट्रेट ऑफ होर्मुज (Strait of Hormuz) एक संकरा लेकिन अत्यंत रणनीतिक और महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। यह उत्तर में ईरान और दक्षिण में ओमान तथा संयुक्त अरब अमीरात के बीच स्थित है। इसकी कुल लंबाई लगभग 167 किलोमीटर है और सबसे संकरा हिस्सा मात्र 33 किलोमीटर चौड़ा है।

स्ट्रेट ऑफ होर्मुज क्यों महत्वपूर्ण

इस मार्ग से प्रतिदिन करीब 17 मिलियन बैरल कच्चा तेल (Crude Oil) गुजरता है, जो दुनिया की कुल तेल खपत का 20-30 प्रतिशत है। फारस की खाड़ी से निर्यात होने वाले 88 प्रतिशत से अधिक तेल इसी जलडमरूमध्य के जरिए भेजे जाते हैं। साथ ही, दुनिया की करीब एक-तिहाई लिक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG) भी इसी रास्ते से होकर जाती है।

भारत पर क्यों नहीं पड़ेगा बड़ा असर

भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा आयात के जरिए पूरा करता है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत तेल मिडिल ईस्ट से स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के रास्ते से होकर आता है। ऐसे में यह जलमार्ग भारत के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके बावजूद अगर यह रास्ता बंद होता है तो भारत की तेल आपूर्ति पर सीधा असर नहीं पड़ेगा।

क्या है भारत सरकार की रणनीति

भारत सरकार और पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस स्थिति पर स्पष्ट किया है कि भारत के पास पर्याप्त वैकल्पिक स्रोत हैं और तेल की कोई कमी नहीं होगी। सरकार इस घटनाक्रम पर करीबी नजर बनाए हुए है।

भारत की रणनीतिक तैयारियों की बात करें तो मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ते ही भारत ने रूस से जून में तेल आयात में इजाफा कर दिया। रूस से तेल सुएज कैनाल के जरिए आता है, जो स्ट्रेट ऑफ होर्मुज पर निर्भर नहीं है। वहीं, भारत ने मिडिल ईस्ट के भीतर भी सऊदी अरब और इराक जैसे देशों से सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक योजना बनाई है। साथ ही, अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका जैसे देशों को भारत विकल्प के तौर पर पहले ही चिन्हित कर चुका है, जहां से आवश्यकतानुसार तेल मंगाया जा सकता है।

 

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