Shivani Gupta
8 Nov 2025
Aakash Waghmare
7 Nov 2025
वाशिंगटन। भारत में भोजन पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले घटिया ईंधन के संपर्क में आने के कारण हर 1,000 शिशुओं और बच्चों में से 27 की मौत हो जाती है। अमेरिका के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। कोर्नेल विश्वविद्यालय में चार्ल्स एच. डायसन स्कूल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट में प्रोफेसर अर्नब बसु समेत अन्य लेखकों ने भोजन पकाने के ईंधन के विकल्प और भारत में बाल मृत्यु दर शीर्षक वाली रिपोर्ट में 1992 से 2016 तक बड़े पैमाने पर घरों के सर्वेक्षण के आंकड़ों का इस्तेमाल किया है।
आंकड़ों का इस्तेमाल यह पता लगाने के लिए किया गया कि प्रदूषण फैलाने वाले इन ईंधन का मनुष्य की सेहत पर क्या असर पड़ता है। इसमें पाया गया कि इसका सबसे ज्यादा असर एक माह की आयु तक के शिशुओं पर पड़ा है। बसु ने कहा कि यह ऐसा आयु वर्ग है, जिसके फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं और शिशु सबसे ज्यादा मां की गोद में रहते हैं, जो अक्सर घर में खाना पकाने वाली मुख्य सदस्य होती हैं।
बासु ने बताया कि भारतीय घरों में खराब ईंधन के कारण लड़कों के बजाय लड़कियों की मौत ज्यादा होती हैं। इसकी वजह यह नहीं है कि लड़कियां अधिक नाजुक या प्रदूषण से जुड़ी श्वसन संबंधी बीमारियों के प्रति संवेदनशील होती हैं बल्कि इसकी वजह यह है कि भारत में बेटों को ज्यादा तरजीह दी जाती है और जब बेटी बीमार पड़ती है तो उसके इलाज पर ध्यान नहीं देते हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी चूल्हे या स्टोव पर खाना पकाती हैं, जिसमें ईंधन के तौर पर लकड़ी, उपले या फसलों के अपशिष्ट का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे दुनियाभर में हर साल 32 लाख लोगों की मौत होती है। बसु ने कहा कि बदलाव लाना मुश्किल है।