Naresh Bhagoria
3 Dec 2025
Naresh Bhagoria
3 Dec 2025
Garima Vishwakarma
3 Dec 2025
शाहिद खान, भोपाल। 41 साल पहले हुई भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) ने न सिर्फ उस वक्त लोगों को अपनी जद में लिया, बल्कि गर्भ में पल रहे या सालों बाद जन्मे लोगों को भी शिकार बनाया। भोपाल में आज भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो 41 साल बाद भी इस जहर को जिस्म में न सिर्फ बीमारियों की शक्ल में महसूस कर रहे हैं, बल्कि दवाओं के सहारे जिंदा हैं। उस भयावह रात की प्रत्यक्ष पीड़िता 65 वर्षीय कस्तूरी बाई बताती हैं सुबह, दोपहर और शाम, हर भोजन के साथ गोलियां खाना मजबूरी है। दशकों में हम क्विंटल भर दवा खा चुके हैं।
कस्तूरी बाई का जब दवाइयों का रिकॉर्ड देखा और डॉक्टरों से बात की, तो यह सच सामने आया कि गैस पीड़ितों का पूरा जीवन लगातार दवाइयों पर ही गुजर रहा है। और ऐसी दवाएं खाने वाली सिर्फ कस्तूरी नहीं हैं, बल्कि कई ऐसे पीड़ित हैं जो इस दर्द को सहते हुए जीवन जी रहे हैं। 50 वर्षीय इस्माइल कहते हैं-मुझे शुगर, ब्लड प्रेशर, गुर्दे और दिल की बीमारी है। मैं कभी-कभी खाना भूल सकता हूं, लेकिन दवा नहीं। सुबह-दोपहर-शाम मिलाकर 12 गोलियां लेनी पड़ती हैं। खाना भी इसलिए खाता हूं कि जीने के लिए दवा खानी होती है। मुझे लगता है कि मैं एक महीने में कई किलो दवा खा जाता हूं। इस्माइल की बात सिर्फ एक पीड़ित की कहानी नहीं, बल्कि हजारों गैस प्रभावित परिवारों की हकीकत है।
कम्यूनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. विवेक पांडे बताते हैं कि दवा की एक औसत गोली का वजन 0.5 से 1 ग्राम माना जाता है। यदि औसतन 1 ग्राम प्रति गोली माना जाए और कोई पीड़ित रोजाना 10 गोलियां खाए, तो वह प्रतिदिन लगभग 10 ग्राम दवा शरीर में ले रहा है। यह आंकड़ा बताता है कि गैस त्रासदी का जहर सिर्फ एक रात में नहीं मारा, बल्कि दशकों से इन लोगों के शरीर को भीतर-भीतर खोखला करता चला गया।