Aakash Waghmare
30 Dec 2025
आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने के बयान पर विवाद पहले से ही जारी है। इसी बीच शनिवार (28 जून, 2025) को उपराष्ट्रपति निवास में आयोजित एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आपातकाल की 50वीं बरसी पर संविधान में किए गए बदलावों पर गंभीर सवाल उठाए।
धनखड़ ने कहा- आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जो शब्द जोड़े गए, वे नासूर बन गए हैं। इससे सनातन की आत्मा का अपमान हुआ। जो चीज बदली नहीं जानी चाहिए थी, उसे ही आपातकाल जैसे असामान्य समय में बदल दिया गया।
उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा है, जिसे सम्मान मिलना चाहिए था। लेकिन 1976 में उसे तोड़ा-मरोड़ा और ध्वस्त कर दिया गया। उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी और देश ने अपने संविधान की मूल प्रस्तावना में ऐसा बदलाव नहीं किया, जैसा भारत में हुआ।
धनखड़ ने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर को याद करते हुए कहा कि “बाबा साहेब हमारे विचारों में बसते हैं, हमारी आत्मा को छूते हैं।” उन्होंने इस मौके पर युवाओं से अपील करते हुए कहा कि संविधान की मूल भावना को समझना और उसका सम्मान करना आज की पीढ़ी की जिम्मेदारी है।
उपराष्ट्रपति ने 1975 में लगे आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय बताया। उन्होंने कहा कि उस समय जो भी बदलाव संविधान में किए गए, वे जल्दबाज़ी और सत्ता की मंशा से प्रेरित थे, जिनसे देश की लोकतांत्रिक नींव हिल गई थी।
धनखड़ के इस बयान से पहले आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने की मांग की थी। अब इस मुद्दे पर बहस और भी तेज हो गई है। कई राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इसे लोकतंत्र और संविधान की रक्षा से जोड़कर देख रहे हैं।