
एंटरटेनमेंट डेस्क। बॉलीवुड के मशहूर राइटर सलीम खान आज अपना 88वां जन्मदिन मना रहे हैं। वे हिंदी सिनेमा के स्क्रिप्ट राइटर ही नहीं बल्कि एक अभिनेता भी रहे हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत अभिनेता के रुप में की थी, लेकिन उन्हें फेम स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर मिला। शोले, दीवार, त्रिशूल, काला पत्थर, शक्ति जैसी दमदार फिल्मों के लेखक सलीम अपने दोस्तों के लिए लव लेटर भी लिखा करते थे। उन्होंने नशे में आकर एक ऐसा काम किया जिससे आज सभी राइटर्स को फिल्मों में क्रेडिट दिया जाता है।
लव लेटर ने निखारी राइटिंग स्किल्स
सलीम दोस्तों के साथ मध्य प्रदेश के इंदौर में रहते थे। उनके दोस्तों को उनकी लिखने की कला मालूम थी, इसलिए वे उनसे अपने लव लेटर्स लिखवाया करते थे। दोस्तों के लव लेटर लिखने से शुरू हुआ उनका राइटिंग का सिलसिला आज हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन स्क्रिप्ट राइटर बनने तक का सफर तय किया है।
केवल 400 रुपए थी पहली सैलरी
वहीं एक शादी समारोह ने सलीम की किस्मत बदल दी। वे एक शादी में पहुंचे थे, जहां डायरेक्टर के. अमरनाथ ने उन्हें देखा। के. अमरनाथ को सलीम के अंदर एक हीरो दिखा। वे सलीम के पास गए और उन्हें अपने ऑफिस का पता दिया। उस समय अमरनाथ ने सलीम को 400 रुपए सैलरी पर एक्टिंग करने का मौका दिया। 14 फिल्मों में काम करने के बाद भी उन्हें एक्टर के रूप में ज्यादा सक्सेस नहीं मिली। हीरो बनकर तो सलीम को कोई पहचान नहीं मिली, लेकिन राइटर बनकर उन्होंने कई आम लड़कों को सुपर स्टार बना दिया।
जावेद की सलाह पर बने राइटर
सलीम और जावेद की मुलाकात ‘सरहदी लुटेरे’ की शूटिंग के दौरान हुई थी। जावेद उस समय क्लैपर बॉय का काम किया करते थे। शूटिंग के दौरान जावेद और सलीम पक्के दोस्त बन गए। फिर एक दिन जावेद ने सलीम को लेखक बनने की सलाह दी। उनकी सलाह पर सलीम एक्टिंग छोड़ लेखक अबरार अलवी के सहायक बन गए।
बदला हिदीं सिनेमा का इतिहास
फिल्मों में पहले राइटर्स को क्रेडिट नहीं दिया जाता था। जब सलीम-जावेद ने ‘जंजीर’ की कहानी लिखी तो फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर प्रकाश मेहरा से उन्होंने कहा कि फिल्म के पोस्टर पर उनका नाम भी होना चाहिए। लेकिन प्रकाश मेहरा ने पोस्टर पर उनका नाम देने से मना कर दिया।
जब फिल्म की रिलीजिंग डेट नजदीक आने लगी तब जंजीर के प्रमोशन के लिए पूरे मुंबई शहर में फिल्म के पोस्टर लगवाए गए। एक दिन सलीम ने शराब के नशे में पोस्टर पर अपना और जावेद का नाम लिखने की तरकीब निकाली। उन्होंने जी.पी. सिप्पी के प्रोडक्शन हाउस में काम करने वाले एक लड़के को कॉल कर दो जीप और कुछ पेंटिंग का सामान मंगवाया। सलीम ने उस लड़के से कहा पूरे शहर में फिल्म जंजीर के पोस्टर में लिख दो- ‘रिटन बाय सलीम-जावेद।’ अगले दिन शहर में लगे जंजीर के पोस्टर कुछ बदल चुके थे।
खूब हलचल मची लेकिन दोनों की इस तरकीब ने इतिहास रच दिया। इसके बाद पूरी इंडस्ट्री को ऐसा झटका लगा कि तब से हर फिल्म में राइटर्स को क्रेडिट दिया जाने लगा।
24 फिल्मों में किया साथ काम
सलीम-जावेद की जोड़ी ने लगभग 24 फिल्मों में एक साथ लिखने का काम किया जिनमें से कुछ सुपर डुपर हिट साबित हुईं। सलीम और जावेद ने फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’,’सीता और गीता’, ‘यादों की बारात’, ‘जंजीर’, ‘मजबूर’, ‘हाथ की सफाई’, ‘दीवार’, ‘शोले’, ‘चाचा-भतीजा’, ‘त्रिशूल’, ‘डॉन’, ‘काला पत्थर’, ‘दोस्ताना’, ‘शान’, ‘क्रांति’, ‘शक्ति’ और ‘मिस्टर इंडिया’ जैसी फिल्मों को बेहतरीन तरीके से लिखा है। इनमें से कई फिल्मों के डायलॉग्स काफी फेमस हैं। पढ़ें कुछ फेमस डायलॉग्स…
- जब तक बैठने को न कहा जाए खड़े रहो, ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं। (फिल्म जंजीर-1973)
- कितने आदमी थे। (फिल्म शोले-1975)
- मेरे पास मां है। (फिल्म दीवार-1975)
- डॉन का इंतजार तो 12 मुल्कों की पुलिस कर रही है। (फिल्म डॉन-1978)
(इनपुट – सोनाली राय)
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