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भील चित्रों में मुख्य कथ्य तो प्रकृति ही है, जिसे कैनवास पर जीवंत करती हूं

जनजातीय संग्रहालय में भील चित्रकार संगीता ताहेड़ के चित्रों की प्रदर्शनी

भील समुदाय की वरिष्ठ चित्रकार लाड़ोबाई मेरी बड़ी सास हैं। शुरुआत में चित्रकारी में मुझे उनका सहयोग प्राप्त हुआ। यह कहना है, भील समुदाय की चित्रकार संगीत ताहेड़ का, जिनके चित्रों की प्रदर्शनी जनजातीय संग्रहालय में आयोजित की गई है। इस प्रदर्शनी के माध्यम से न सिर्फ इन चित्रों को यहां देखा जा सकता है बल्कि यह विक्रय के लिए भी उपलब्ध है। संगीता कहती हैं, मुझे बड़ी सास लाड़ोबाई को चित्रकारी करते हुए देखना अच्छा लगता था। उन्हीं से चित्रकारी के प्रति मुझे शुरुआती प्रेरणा और आवश्यक प्रोत्साहन मिलता रहा। अन्य लड़कियों की तरह बचपन से घरों की दीवारों को रंगना, सजाना और आंगन में रंगोली बनाना मुझे अच्छा लगता था, लेकिन कैनवास पर मेरी चित्रकारी का सफर 8 साल पहले शुरू हुआ और मैं अपने जीवनानुभवों और जातीय संस्कार बोध को रूपाकार दे रही हूं।

चटक रंगों में संजोती हूं चित्र

मैं अपने चित्रों में चटक रंगों का इस्तेमाल करती हूं, जिसमें पशु-पक्षी, पेड़-पौधे एवं जंगली जानवरों की झलक प्रमुखता से दिखाई देती है। संगीता ने विभिन्न कला प्रदर्शनियों एवं चित्र शिविरों में सक्रिय भागीदारी की है। कई प्रतिष्ठानों एवं संस्थानों के संग्रह में उनकी कलाकृतियों को संकलित किया गया है। मैंने इस पेंटिंग की असली शैली को अपनाया यानी चित्रों में छोटे बिंदुओं का भरपूर प्रयोग करना। बिंदुओं का समुच्चय ही कथ्य तैयार करता है। मेरा मुख्य कथ्य तो प्रकृति ही है जिसे मैं कैनवास पर जीवंत करती हूं।

भील चित्रकारी में होती है बिंदी की प्रमुखता

गोंड चित्रकला में रेखाओं का महत्व ज्यादा होता है, वहीं भील चित्रकारी में बिंदी का बहुत अधिक महत्व होता है। चित्रकारी का ज्यादातर हिस्सा बिंदी के माध्यम से ही उकेरा जाता है। भील चित्रकारी लगभग बिंदुओं पर ही आधारित है। जनजातीय संग्रहालय में इस प्रदर्शनी को 30 जुलाई तक दोपहर 12 बजे से शाम 7 बजे तक देखा जा सकता है।

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