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महात्मा गांधी की 74वीं पुण्यतिथि आज: पीएम मोदी ने राजघाट पर दी श्रद्धांजलि, जानिए बापू कैसे बने देश के राष्ट्रपिता

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 74वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। गांधी जी ने देश के लिए जो किया वह देश सदियों तक याद रखेगा। इस मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राजधानी में राजघाट पर जाकर राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि दी।

अंग्रेजों को भी झुकने को कर दिया था मजबूर

गांधी जी के आदर्शों, अहिंसा की प्रेरणा, सत्य की ताकत ने अंग्रेजों को भी झुकने को मजबूर कर दिया। उनके इसी योगदान के कारण गांधीजी आज महात्मा गांधी के नाम से जाने जाते हैं। कोई उन्हें बापू तो कोई राष्ट्रपिता कहता है।

 

पढ़ाई में कैसे थे गांधी जी?

गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में पुतलीबाई और करमचंद गांधी के घर में हुआ था। गांधी जी बचपन में पढ़ाई में अधिक होनहार नहीं थे, लेकिन वह अंग्रेजी में निपुण थे। अंग्रेजी विषय में उन्हें कई पुरस्कार और छात्रवृत्तियां मिला करती थीं।

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13 साल की उम्र में हो गई थी शादी

गांधी जी की मात्र 13 साल की उम्र में पोरबंदर के एक व्यापारी की बेटी कस्तूरबा से शादी हो गई थी। कस्तूरबा उनसे 6 महीने बड़ी थीं। वहीं 15 साल की उम्र में गांधी जी एक बेटे के पिता भी बन गए थे, हालांकि उनका वह पुत्र जीवित न रहा। इसके बाद गांधी जी और कस्तूरबा गांधी के चार बेटे हुए, जिनके नाम हरिलाल, मनिलाल, रामलाल, देवदास है। गांधीजी के हर कदम पर कस्तूरबा गांधी ने उनका साथ दिया। गांधी जी को लोग प्यार से बापू कहते हैं तो कस्तूरबा गांधी को बा कहते थे।

 

गांधी जी के आंदोलन

गांधी जी ने वकालत की शिक्षा हासिल कर 1919 में अंग्रेजों के रॉलेट एक्ट कानून के खिलाफ विरोध शुरु किया। इस एक्ट के तहत बिना मुकदमा चलाए किसी व्यक्ति को जेल में भेजने का प्रावधान था। फिर गांधी जी ने सत्याग्रह की घोषणा की। ‘असहयोग आंदोलन’, ‘नागरिक अवज्ञा आंदोलन’, ‘दांडी यात्रा’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ किए।

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किसने कहा था पहली बार राष्ट्रपिता

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही सबसे पहले 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो स्टेशन से दिए गए अपने भाषण में गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। अपने भाषण के अंत में सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि ‘हमारे राष्ट्रपिता, भारत की आजादी की पवित्र लड़ाई में मैं आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की कामना कर रहा हूं।’

 

नाथूराम गोडसे ने की थी हत्या

30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी। अहिंसा का संदेश देने वाले इस महान विभूति के जीवन का अंत होने के बाद देशवासियों ने मन ही मन गांधीजी को राष्ट्रपिता मान लिया। इससे पहले 20 जनवरी 1948 को भी बिड़ला हाउस में उन पर हमला हुआ था। प्रार्थना सभा में गांधीजी ने ये कहा कि जिस किसी ने भी ये कोशिश की थी, उसे मेरी तरफ से माफ कर दिया जाए। गांधीजी का ये आदेश था कि कोई भी पुलिस वाला उनकी प्रार्थना सभा में नहीं होगा।

हत्या के मामले में 8 लोगों पर मुकदमा चला

गांधी की हत्या के मामले में 8 लोगों पर मुकदमा चला। इनमें नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, गोपाल गोडसे, वीर सावरकर, दत्तात्रेय परचुरे, मदनलाल, दिगंबर बड़गे और उसका नौकर शंकर किस्तैया शामिल थे। इनमें बड़गे सरकारी गवाह बन गए।

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आजाद भारत की पहली फांसी की सजा

15 नवंबर 1949 को गोडसे और आप्टे को गांधी की हत्या के आरोप में दोषी ठहराते हुए फांसी दे दी गई। ये आजाद भारत की पहली फांसी की सजा थी। मदनलाल, करकरे, गोपाल गोडसे, डॉ. परचुरे और शंकर को आजीवन कारावास की सजा दी गई। वहीं वीर सावरकर के खिलाफ किसी तरह के सबूत नहीं मिलने की वजह से उन्हें बरी कर दिया गया।

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