जबलपुर में 57 घोड़ों में से 19 की मौत, प्रशासन ने दर्ज की FIR, फार्म मालिक और हैदराबाद की एक कंपनी पर पशु क्रूरता का आरोप
जबलपुर। हैदराबाद रेस कोर्स से जबलपुर लाए गए 57 घोड़ों में से अब तक 19 की मौत हो चुकी है। 4 महीने तक इलाज और जांच के बाद भी स्थिति बिगड़ती रही। अब प्रशासन हरकत में आया है और पनागर पुलिस ने स्टड फार्म मालिक सचिन तिवारी और हैदराबाद की एक कंपनी के खिलाफ पशु क्रूरता अधिनियम के तहत केस दर्ज किया है।
कैसे शुरू हुआ मामला
29 अप्रैल से 3 मई के बीच ये घोड़े जबलपुर के रेपुरा गांव स्थित एक डेयरी में लाए गए थे। 5 मई को सचिन तिवारी ने जिला प्रशासन और वेटनरी विभाग को घोड़ों की तबीयत बिगड़ने की जानकारी देते हुए इलाज के लिए आवेदन दिया। कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना के निर्देश पर वेटनरी डॉक्टरों की टीम डेयरी में तैनात की गई। शुरुआती मौतों में ग्लैंडर्स बीमारी की आशंका जताई गई थी, लेकिन जांच रिपोर्ट में इसके लक्षण नहीं मिले।
4 महीने बाद हुई FIR
5 मई से 31 अगस्त तक प्रशासन और वेटनरी विभाग की ओर से कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। लेकिन 1 सितम्बर को अचानक FIR दर्ज की गई। पुलिस ने आरोप लगाया कि घोड़ों को जबलपुर लाने और रेपुरा गांव में रखने के लिए न तो प्रशासन से और न ही ग्राम पंचायत से अनुमति ली गई थी। माना जा रहा है कि मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण ही कार्रवाई में देरी हुई।
हाई कोर्ट पहुंचा मामला
एनिमल लवर्स सिमरन इस्सर और अन्य ने इस पूरे प्रकरण में हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। अब तक प्रशासन, वेटरनरी विभाग, राज्य सरकार और आरोपी पक्ष की ओर से करीब 1600 पेज का जवाब कोर्ट में दिया जा चुका है। अगली सुनवाई अक्टूबर में होनी है।
मौतों का सिलसिला
- 5 मई को लाए गए थे 57 घोड़े – इनमें थोरो, काठियावाड़ी और मारवाड़ी प्रजाति के घोड़े शामिल थे।
- 7 से 13 मई के बीच 8 घोड़ों की मौत हो गई।
- इसके बाद एक-एक कर और 6 घोड़े मरे और आंकड़ा 14 पहुंच गया।
- हाल ही में 5 और घोड़ों की जान गई, जिससे मरने वालों की संख्या बढ़कर 19 हो गई।
- वर्तमान में 38 घोड़े बचे हैं।
प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल
इस पूरे मामले में प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। मई से अगस्त तक केवल इलाज और जांच का हवाला दिया गया। 23 मई को कलेक्टर ने प्रेस रिलीज जारी की थी, जिसमें सचिन तिवारी द्वारा इलाज के लिए आवेदन देने की पुष्टि की गई थी। लेकिन कार्रवाई तभी हुई जब मामला हाई कोर्ट की निगरानी में आया।