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‘जब यमदूत ने गलती से हर लिए इस वसंत सेना के प्राण’… भोपाल के भूमिका थिएटर में ‘नाटक भगवदज्जुकम्’ का मंचन

भोपाल। भूमिका नाट्य संस्था ने बुधवार को बौधायन द्वारा रचित नाटक भगवदज्जुकम् का हिंदी रूपांतरण भगवत और अज्जुकम् का बायपास रोड स्थित BMHRC के परिसर में शाम 5 बजे मंचन किया। जिसका निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी गोपाल दुबे ने किया है।

क्या है कहानी ?

नाटक की शुरुआत होती है बौद्ध भिक्षु (याशील दुबे) और उसका शिष्य शांडिल्य (रंजीत ठाकुर) से जो विहार पर निकले हैं। शांडिल्य, जो पहले ब्राह्मण था फिर जैन बना और फिर बौद्ध धर्म में आया। सिर्फ खाने के लालच में भोजन शांडिल्य के लिए बहुत प्रिय है तथा वो दुनिया की माया के बंधन से अलग नहीं हो पा रहा है। बौद्ध भिक्षु और शांडिल्य भ्रमण करते-करते एक उद्यान में पहुंचते हैं, जहां गणिका वसंत सेना (मुस्कान मैना) अपनी सखियों परिभ्रतिक (रिया सिंह) और मधुरिका (सानिया गुप्ता) के साथ वहां टहल रही है तथा वसंत सेना अपने प्रेमी रामिलक (जितेंद्र परमार) की प्रतीक्षा कर रही है और मधुर-मधुर गीत गाती है।

शांडिल्य वसंत सेना के गीत सुनकर मोहित होने लगता है और गीत की ध्वनि के माध्यम से वसंतसेना को ढूंढने लगता है। इसी बीच यमदूत (हर्षित शर्मा) का प्रवेश होता है जो यमराज की आज्ञा अनुसार वसंत सेना के प्राण हरने गया है और वह वसंत सेना के प्राण भी हर लेता है परंतु ये वो वसंत सेना नहीं होती जिसके प्राण लेने को यमराज ने कहा था, यमदूत गलती से इस वसंत सेना के प्राण हर लेता है।शांडिल्य ढूंढता हुआ आता है तो उसे वसंत सेना मरी हुई मिलती है, और रोना, बड़बड़ाना शुरू कर देता है और अपने गुरु से प्रार्थना करता है की वह अपने योग से उसे पुन: वसंत सेना को जीवित कर दें।

यमदूत से गलती हो गई!

गुरु समझ जाते हैं कि यमदूत से गलती हो गई है, वह किसी और के प्राण ले गया है। इसी बीच गुरु योग के बल पर अपने प्राण वसंत सेना के शरीर में डाल देते हैं और स्वयं बिना प्राण के मर जाते हैं। कुछ समय के बाद यमदूत पुनः आता है और समझ जाता है कि ये वह वसंत सेना नहीं है, जिसके प्राण मुझे हरना थे ये तो कोई और ही है और समझ जाता है कि बौद्ध साधु इसके शरीर से खेल रहा है और कुछ समय के लिए वसंत सेना के प्राण बौद्ध साधु के शरीर मे डाल देता है।

अब साधु वसंत सेना की तरह आचरण करने लगता है वसंत सेना की मां (मनाली मैना) आती हैं और दुखी होती हैं, क्योंकि बेटी साधु की भाषा बोल रही है फिर उसका प्रेमी रामिलक आता है। वह भी यह सब देख कर परेशान हो जाता है, फिर तांत्रिक (कार्तिक वानखड़े) आता है उसे ठिक करने के लिए पर वह भी डरकर भाग जाता है।

आत्मा की अदला-बदली

अंत में यमदूत आता है और दोनों की आत्मा की अदला-बदली कर देता है, वसंत सेना की आत्मा वसंत सेना के शरीर में और साधु की आत्मा साधु शरीर में आ जाती है। सब ठीक होने पर शांडिल्य साधु से पूछता है कि ये सब क्या हुआ था तब साधु कहते हैं कि बहुत लंबी कहानी है फिर कभी आराम से बताता हूं और ऐसा करहकर साधु तपस्या में लीन हो जाते हैं।

मंच पर इन कलाकारों ने दी प्रस्तुति

परिभ्राजक (बौद्ध साधु) – यशील दुबे

शांडिल्य – रंजीत ठाकुर

वसंत सेना – मुस्कान मैना

परिभ्रतिका – रिया सिंह

मधुरिका – सानिया गुप्ता

माता – मनाली मैना

रामिलक – जितेंद्र परमार

तांत्रिक – कार्तिक वानखड़े

यमदूत – हर्षित शर्मा

सेवक – हार्दिक धकिते

सेवक 2 – वरुण

प्रकाश परिकल्पना – आशीर्वाद झा, उद्देश्य

मंच व्यवस्थापक – यशोवर्धन शर्मा, शिव रघुवंशी

मंच सामग्री – वरुण, कार्तिक, हार्दिक

संगीत – रवि अर्जुन

गीत – जितेंद्र परमार

रूप सज्जा – अंजू चंद्रवंशी, मनाली मैना

लेखक – बौधायन

परिकल्पना एवं निर्देशन – गोपाल दुबे

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