Mithilesh Yadav
1 Oct 2025
Hemant Nagle
1 Oct 2025
विदिशा। दशहरे पर पूरे देश में रावण के पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश का विदिशा जिला एक अनोखी परंपरा का गवाह है। यहां नटेरन तहसील से करीब 6 किलोमीटर दूर स्थित 'रावण गांव' में दशहरे के दिन रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी भव्य पूजा-अर्चना की जाती है। लोग रावण को देवता मानते हैं और श्रद्धा के साथ 'रावण बाबा' कहकर उसकी आरती उतारते हैं।
गांव में परमार काल का एक प्राचीन मंदिर है, जिसमें रावण की विशाल लेटी हुई प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा सदियों पुरानी बताई जाती है। मंदिर की दीवारों पर रावण की आरती अंकित है, जिसे प्रतिदिन श्रद्धालु पढ़ते हैं। परंपरा यह है कि गांव में किसी शुभ कार्य, विशेषकर विवाह से पहले, पहला निमंत्रण रावण बाबा को भेजा जाता है। विवाह की शुरुआत प्रतिमा की नाभि में तेल भरकर की जाती है।
गांव के कई ब्राह्मण परिवार खुद को रावण का वंशज मानते हैं। उनका विश्वास है कि रावण कोई खलनायक नहीं था, बल्कि ज्ञान और शक्ति का प्रतीक था। यही कारण है कि लोग अपने वाहनों, घरों और दुकानों पर 'जय लंकेश' और 'जय रावण बाबा' लिखवाते हैं। कई लोग शरीर पर रावण के नाम के टैटू भी गुदवाते हैं। विवाहित महिलाएं जब मंदिर से गुजरती हैं तो घूंघट निकालकर रावण बाबा को प्रणाम करती हैं।
रावण गांव से जुड़ी कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं। मान्यता है कि गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर बूधे की पहाड़ी पर 'बुद्धा राक्षस' नामक असुर रहता था। वह रावण से युद्ध करना चाहता था, लेकिन लंका की भव्यता देखकर शांत हो जाता। कहा जाता है कि रावण ने ही उसे सलाह दी कि उसकी प्रतिमा बनाकर उसी से युद्ध करे। वही प्रतिमा आज भी इस मंदिर में मौजूद है।
इसके अलावा, गांव के तालाब को लेकर भी किवदंती है कि उसमें रावण की तलवार सुरक्षित है। दशहरे के दिन इस तालाब के किनारे भी श्रद्धालु जुटते हैं।
रावण गांव केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता की गहरी झलक है। जहां पूरा देश दशहरे पर रावण का दहन करता है, वहीं विदिशा का यह गांव उसे देवता की तरह पूजता है। यही भारत की सबसे बड़ी खूबी है- हर परंपरा का अपना रंग और हर आस्था का अलग विश्वास।