Naresh Bhagoria
15 Dec 2025
नई दिल्ली। मोदी सरकार ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है। मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MGNREGA) को हटाकर उसकी जगह नया ग्रामीण रोजगार कानून लाया जा सकता है। न्यूज एजेंसी PTI ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि सरकार ने इस प्रस्ताव से जुड़े बिल का ड्राफ्ट लोकसभा सांसदों के बीच साझा किया है।
प्रस्तावित कानून का नाम ‘विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) बिल, 2025’ रखा गया है। प्रस्तावित बिल में कहा गया है कि इसका मकसद ‘विकसित भारत 2047’ के राष्ट्रीय विजन के अनुरूप ग्रामीण विकास का नया मॉडल तैयार करना है।
इसके तहत ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले रोजगार की गारंटी 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रावधान किया गया है।
इससे पहले शुक्रवार को यह खबर सामने आई थी कि केंद्रीय कैबिनेट ने मनरेगा का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ कर दिया है। हालांकि, इस संबंध में सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया था, जिससे स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो सकी।
शुक्रवार को मनरेगा का नाम बदले जाने की खबर सामने आने के बाद वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इस फैसले पर सवाल उठाए थे। उनका कहा था कि उन्हें MGNREGA का नाम बदलने के पीछे का तर्क समझ नहीं आता, क्योंकि इससे बिना जरूरत सरकारी संसाधनों की बर्बादी होती है।
प्रियंका गांधी आगे बोलीं, “मुझे समझ नहीं आता कि इसके पीछे क्या सोच है। यह महात्मा गांधी का नाम है और जब इसे बदला जाता है तो सरकार को दोबारा खर्च करना पड़ता है। दफ्तरों से लेकर स्टेशनरी तक हर जगह नाम बदलना पड़ता है, जो एक लंबी और महंगी प्रक्रिया है। ऐसे में इसका फायदा क्या है?”
कांग्रेस की नेता सुप्रिया श्रीनेत ने मनरेगा का नाम बदले जाने को लेकर एक वीडियो साझा किया था। वीडियो में उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने MGNREGA का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार स्कीम’ रख दिया है। उन्होंने याद दिलाया कि जिस मनरेगा को प्रधानमंत्री मोदी पहले कांग्रेस सरकार की विफलताओं का प्रतीक बताते थे, वही योजना आज ग्रामीण भारत के लिए संजीवनी साबित हुई है।
सुप्रिया श्रीनेत ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार की योजनाओं के नाम बदलकर उन्हें अपना बताना मोदी सरकार की पुरानी आदत रही है। उन्होंने कहा, “पिछले 11 सालों में यही किया गया है—UPA की योजनाओं का नाम बदलकर उन पर अपना ठप्पा लगाया गया और फिर उसका प्रचार किया गया।”