Aakash Waghmare
13 Dec 2025
नई दिल्ली। केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को महात्या गांधी मनरेगा नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी (MNREGA) एक्ट का नाम बदलकर अब 'पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना' किया है। शुक्रवार को केंद्रीय कैबिनेट ने एक्ट का नाम बदलने और काम के दिनों की संख्या बढ़ाने वाले बिल को मंजूरी दे दी। वहीं न्यूज एजेंसी PTI ने सूत्रों के हवाले से बताया कि काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन कर दी जाएगी।
मनरेगा योजना (महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी स्कीम) के नाम से भी जानी जाती है। यह ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीब परिवारों के लिए केंद्र सरकार की खास योजना है। योजना का उद्देश्य मजदूरी करके जीवन गुजारा करने वाले परिवारों की रोजी-रोटी सुनिश्चियत करना साथ ही सुरक्षा बढ़ाना है।
केंद्र की योजना मजदूरी करने वाले परिवार के लिए अहम मानी जाती है। इसके तहत एक फाइनेंशियल ईयर में 100 दिनों की मजदूरी वाला काम दिया जाता है। जिसका मकसद परिवार के किसी भी बड़े सदस्य बिना किसी अन्य काम को सीखे अपनी मर्जी से इस काम के लिए तैयार किए जाते हैं।
कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्नीनेत ने मोदी सरकार द्वार मनरेगा योजना के नाम बदलाव पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक्स पर वीडियो जारी कर कहा मोदी जी ने मनरेगा का नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार स्कीम किया है। इसे मोदी कांग्रेस की विफलताओं का पुलिंदा बताते थे। लेकिन आज असलियत यह है कि यहीं मनरेगा स्कीम आज ग्रामीण भारत के लिए संजवनी साबित हुई है।
अपनी 5 मिनट की वीडियो में सुप्रिया ने उन योजनाओं के नाम साझा किए हैं जिन्हें कांग्रेस ने शुरू किए थे। और दावा किया कि मोदी कैबिनेट ने इनके नाम बदले हैं।
वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) का नाम बदलने के फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के कदम के पीछे का तर्क उन्हें समझ में नहीं आता और इससे सरकार पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता है।
वहीं उन्होंने आगे कहा कि MGNREGA केवल एक योजना नहीं, बल्कि महात्मा गांधी के विचारों और ग्रामीण गरीबों के अधिकारों से जुड़ा नाम है। ऐसे में इसका नाम बदलने की सोच ही समझ से परे है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर सरकार को इससे क्या हासिल होगा, जबकि इसका सीधा असर जनता के पैसे पर पड़ता है।
उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि इसके पीछे क्या मानसिकता है। सबसे पहले तो यह महात्मा गांधी का नाम है। जब इसे बदला जाता है, तो सरकार के संसाधनों का दोबारा इस्तेमाल करना पड़ता है। ऑफिस से लेकर स्टेशनरी, दस्तावेजों और साइनबोर्ड तक, हर जगह नाम बदलना पड़ता है। यह पूरी प्रक्रिया बेहद महंगी और गैर-जरूरी है।”