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मेरी यूरोप यात्रा : नीदरलैंड में 90 साल के बूढ़े भी साइकिल चलाते हैं

अमित तिवारी : दौड़ना, भागना और साइकिल चलाना सुबह-सवेरे आम बात है। यह लगभग एक जैसा ही है सभी जगह; चाहे वो भारत हो या फिर यूरोप। हां; एक बात है, जो यूरोप को ख़ास बनाती है और वो है यहां के लोगों का साइकिल के प्रति प्रेम। यह सिर्फ सेहत से ही जुड़ा नहीं है, इसका संबंध एनवायरनमेंटल सस्टेनेबिलिटी यानी पर्यावरणीय स्थिरता से भी है।

यूरोप ग्लोबल वार्मिंग को लेकर बहुत चिंतित भी है और सजग भी। यहां के लोग ऐसी किसी भी सकारात्मक सोच के लिए एक-दूसरे के साथ हमेशा खड़े रहते हैं।

यूरोप में एक देश है-नीदरलैंड। बहुत ही सुंदर, साफ़-सुथरा; ऐसा की एक नजर में मन मोह ले। इसके पीछे एक बड़ा कारण है, बाकी सब चीजों के साथ-साथ यहां की यातायात व्यवस्था। इन दिनों मैं यूरोप की यात्रा पर हूं। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम के पास एक शहर एम्स्टेलवीन की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले रहा हूं। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि यहां परिवहन के लिए बकायदे एक व्यवस्था है। सबसे पहले यहां पैदल चलने वालों को तरजीह दी जाती है, जिससे कार्बन फुटप्रिंट शून्य हो जाता है। बता दें कि कार्बन फुटप्रिंट ग्रीनहाउस गैसों- कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन आदि की कुल मात्रा है, जो हमारे कार्यों से पैदा होती है।

दूसरे नंबर पर यहां अहमियत दी जाती है। साइकिल को। इसके कई फायदे हैं। जैसे-जगह कम घेरना और ज्यादा काम करना, सेहत दुरुस्त रखना, देश को प्रदूषण रहित बनाना। इसके बाद नंबर आता है यात्री यातायात व्यवस्था का। इसमें बस, ट्राम और ट्रेन शामिल हैं। आखिर में मोटर बाइक और कार को रखा गया है।

कार यातायात प्रमुखता की श्रेणी में आख़िरी है। मतलब जब अति आवश्यकता हो, तभी इसका प्रयोग किया जाता है, अन्यथा साइकिल ही मुख्य यातायात का साधन है। यह सिर्फ नीदरलैंड ही नहीं, बल्कि यूरोप की लगभग सभी विकसित व्यस्थाओं में एक सामान्य बात है।

हमारे देश भारत में भी साइकिल का प्रयोग बहुतायत होता है। यह अलग बात है कि वो ज्यादातर थोड़ा अधिक पैसा कमाने और बाइक लेने के बाद पीछे छूट जाता है। भुनसारे कुछ लोग साइकिल चलाते जरूर दिख जाएंगे, पर वो भी वर्ज़िश के लिए ही। बाकी यातायात के लिए बाइक और कार ही प्रमुख साधन है।

अकसर विकासशील देशों में यह देखा जाता है कि कार एक तरीके से ‘स्टेटस सिम्बल’ के रूप में प्रयोग की जाती हैं न की सिर्फ़ यातयात के लिए। जबकि यूरोप खासकर अभी नीदरलैंड में मैं देख रहा हूं कि कार विशुद्ध यातयात में प्रयोग की जाने वाली मशीन के अलावा और कुछ भी नहीं है। यहां तो सरकारी अधिकारी से लेकर अच्छे ओहदे पर कार्य कर रहे निजी क्षेत्र के कर्मचारी भी साइकिल का प्रयोग करके ही कहीं आ-जा रहे हैं। दूरी अधिक होने पर ही कार को प्रयोग में लिया जा रहा है। सभी की साझा जिम्मेदारी की वजह से ही ये जगह इतनी साफ़-सुथरी है।

मैंने पाया की जहां अपने यहां का युवा भी साइकिल पर चलने से कतराता है, वहीं नीदरलैंड और यूरोप में अस्सी से नब्बे वर्ष के बूढ़े भी साइकिल चला रहे हैं। बात करें स्त्रियों की; तो साइकिलिंग के मामले में हमारे यहां इनकी हालत बहुत खराब है, जबकि नीदरलैंड में महिलाएं समान रूप से और हर उम्र तक साइकिल चला रही हैं। इसका असर उनकी सेहत और चाल-ढाल पर भी दिखता है।

कल्पना कीजिए कि 80-90 वर्ष की उम्र में ज्यादातर लोग आपके आसपास साइकिल चला रहे हों, तो वह जगह कैसी दिखेगी? वहां की ऊर्जा का स्तर क्या होगा? नीदरलैंड और पूरे यूरोप में साइकिल को लोगों ने जितना साथ दिया है, सरकारों ने भी उसी स्तर पर सबका ख्याल रखा है। सभी जगह साइकिल ट्रैक उपलब्ध हैं। साइकिल के लिए आने-जाने के साइड निर्धारित हैं, जिसका लोग भी विशेष ख्याल रखते हैं। ‘साइकिल ट्रैक’ पर भी अपनी साइड से ही चलना है। ऐसा नहीं की यह नियम हमारे यहां नहीं हैं, परंतु जब पैदल और साइकिल की बात आती है और ट्रैक खाली पड़े हों, तो लोग नियमों को धता बताकर कहीं भी घुस जाते हैं। यहां यूरोप में पैदल चलने वालों के लिए रास्ता भी है, तो लोग अपनी साइड पकड़कर ही, ताकि सामने से आने वाले को तकलीफ़ न हो।

कुल मिलाकर देखा जाए, तो आज के समय में साइकिल यूरोप की लाइफ लाइन है। यह सिर्फ़ यातायात तक सीमित नहीं है, बल्कि सेहत की भी लाइफ लाइन है। इंतजार है, तो बस उस दिन का; जिस दिन हमारे देश में कार का होना ‘स्टेटस सिम्बल’ नहीं होगा। कार को महज यातायात की एक मशीन समझा जाएगा और साइकिल को प्रमुखता दी जाएगी। खराब होती सेहत और ग्लोबल वार्मिंग के लिए यह अति आवश्यक है। इसकी जिम्मेदारी हम सभी को मिलकर उठानी होगी।

अमित तिवारी, (लेखक, कवि और साहित्यकार)

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