
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में शनिवार को विश्वप्रसिद्ध गोटमार मेला मां चंडी की पूजा अर्चना के साथ शुरू हुआ। मेले को देखने के लिए काफी संख्या में लोग पांढुर्णा पहुंचे हैं। दोपहर तक पत्थरबाजी में 150 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। जबकि, एक व्यक्ति को गंभीर हालत में नागपुर रेफर किया गया है। मेले में पथराव अभी भी जारी है।
भारी पुलिस बल तैनात
मेले की सुरक्षा को देखते हुए आयोजन स्थल पर 400 से अधिक पुलिस जवानों को तैनात किया गया है। बता दें कि पुलिस इस मेले को रोकने चाहती है, लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं हो रहे हैं। वहीं, प्रशासन की तरफ से सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए हैं। इसके साथ ही कलेक्टर ने धारा 144 तो लागू की हैं। इसके अलावा उपद्रवियों पर रखी जा रही है। ड्रोन कैमरे के जरिए पूरे मेले की निगरानी की जा रही है।
गोटमार खेल की कहानी
पांर्ढुना में हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में, पोला त्योहार के दूसरे दिन पांर्ढुना और सावर गांव के बीच बहने वाली जाम नदी के दोनों किनारों से दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाकर इस परंपरा को निभाते हैं। इसके पीछे लोग एक कहानी जरूर बताते हैं। एक बार की बात है पांढुर्णा गांव के एक लड़के का दिल सावर गांव की एक लड़की पर आ गया, फिर दोनों का इश्क परवान चढ़ा और दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया। एक दिन पांढुर्णा गांव का लड़का अपने दोस्तों के साथ सावर गांव पहुंचा और अपनी प्रेमिका को भगाकर ले जा रहा था। जब दोनों जाम नदी को पार कर रहे थे। तभी सावर गांव के लोग वहां पहुंच गए और फिर भीड़ ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए।
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जैसे ही इस बात की जानकारी जब पांढुर्णा गांव के लोगों को लगी तो वे भी पत्थर का जबाव पत्थर से देने पहुंच गए। जिसके बाद पांर्ढुना और सावर गांव के बीच बहती नदी के दोनों किनारों से बदले के पत्थर पत्थर बरसाने लगे, जिसमें नदी के बीच ही लड़का और लड़की की मौत हो गई। दोनों की मौत के बाद पांढुर्णा और सावर गांव के लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ। लिहाजा दोनों गांव के लोगों ने प्रेमी-प्रेमिका का शव ले जाकर मां चंडी के मंदिर में रखा और पूजा-पाठ के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया। इसके बाद से ही परंपरा के नाम पर ये खूनी खेल शुरु हो गया, जो अब तक चल रहा है।
चंडी मां की पूजा के बाद खत्म होता है मेला
सावरगांव और पांढुर्णा पक्ष के लोग जाम नदी में पलाश के पेड़ को लगाते हैं। उसके बाद उसमें झंडी बांधते हैं। नदी में जो पलाश का पेड़ लगाया जाता है, उसे सावरगांव पक्ष के लोग अपनी लड़की मानते हैं। मेला शुरू होने के बाद दोनों गांव के लोग एक दूसरे को पत्थर मारकर परंपरा निभाते हैं। आखिर में झंडी को तोड़ लिया जाता है और चंडी मां की पूजा गोटमार को खत्म करते हैं।
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— Peoples Samachar (@psamachar1) August 27, 2022