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10 साल में 2 लाख लोग डॉग बाइट के शिकार; 5 बच्चों की मौत, कार्रवाई के नाम पर रस्मअदायगी

भोपाल। अयोध्या नगर इलाके में बुधवार को आवारा कुत्ते सात माह के मासूम को घसीटकर झाड़ियों में ले गए और नोचकर मार डाला। दिल दहलाने वाली यह घटना शहर में पहली बार नहीं हुई है। आठ साल में स्ट्रीट डॉग्स राजधानी में पांच बच्चों की जान ले चुके हैं। चार बच्चों को कुत्तों ने नोच कर मार दिया था, एक बच्चा कुत्तों से बचने के लिए दौड़ा तो स्कूल बस की चपेट में आ गया। इसके अलावा रोजाना ये कुत्ते दर्जनों लोगों को काट रहे हैं। बीते साल जेपी और हमीदिया सहित अन्य अस्पतालों में डॉग बाइट के 20 हजार से अधिक केस आए। इस तरह 10 साल में करीब 2 लाख लोग कुत्तों के हमले का शिकार हो चुके हैं। आवारा कुत्तों की रोकथाम को लेकर इन सालों में जिला प्रशासन और नगर निगम की आधा दर्जन बैठकें हो चुकी हैं। हर बार कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण के लिए नसबंदी, धरपकड़ अभियान आदि के निर्णय लिए, लेकिन हर बार कुछ दिन तक कुत्तों की धरपकड़ के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। नतीजा-स्ट्रीट डॉग्स की आबादी तेजी से बढ़ रही है।

2करोड़ हर साल नसबंदी व वैक्सीनेशन पर खर्च

कुत्तों की नसबंदी और वैक्सीनेशन का काम नगर निगम ने नवोदय वेट सोसायटी को दिया है। हर साल इस काम पर डेढ़ से दो करोड़ खर्च होते हैं। लेकिन आबादी कम नहीं हो रही है। आठ साल पहले राजधानी में आवारा कुत्ते करीब 35 हजार थे। यह संख्या बढ़कर डेढ़ लाख से ज्यादा हो गई है। यह आंकड़े निगम के हैं।

नगर निगम के तीन शेल्टर होम चल रहे हैं, जहां रोजाना कुत्तों का वैक्सीनेशन और नसंबदी की जाती है। धरपकड़ अभियान चला रहे हैं, जो आगे नियमित जारी रहेगा। – मालती राय, महापौर

खौफ इतनासड़क पर कुत्तों को देखते ही कांपने लगती है पीड़ित बच्ची

शाहपुरा के बांसखेड़ी में दो साल पहले तीन साल की एक बच्ची पर आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया था। गंभीर अवस्था में उसे हमीदिया अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। यह बच्ची ठीक तो हो गई, लेकिन उसके मन में कुत्तों का डर ऐसा समाया कि वह आज भी उससे उबर नहीं पाई है। बच्ची की मां के अनुसार, उस घटना के बाद उसके मन में इतना डर बैठ गया है कि कुत्तों को देखते ही कांपने लगती है और दिल की धड़कन बढ़ जाती हैं। इसी तरह नारियल खेड़ा की एक महिला सुनीता कुत्तों के नाम से ही डर जातीं हैं। करीब दो साल पहले उनके 7 साल के बच्चे को कुत्तों ने काट लिया था। बेटे की हालत देख मन में इतना डर बैठ गया कि आज भी उसे अकेला नहीं छोड़ती। दरअसल, राजधानी में आवारा कुत्तों के हमले ने कई लोगों को जिंदगी भर का दर्द दे दिया। इनमें बच्चों से लेकर बड़े तक शामिल हैं। ये कुत्तों को देखते ही पैनिक में आ जाते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे साइनोफोबिया कहते हैं। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. रुची सोनी बताती हैं कि साइनोफोबिया बच्चों में 3 से 4 साल की उम्र के बाद हो सकता है, जबकि वयस्कों में साइनोफोबिया अधेड़ उम्र तक रह सकता है।

हमलावर होने के कारण

  1. शहर को डस्टबिन फ्री कर दिया गया है। पहले कॉलोनियों के बाहर कचरा कंटेनर से इन्हें पर्याप्त खाना मिल जाता था। अब नहीं मिल रहा। भूख से कुत्ते हमलावर हो रहे हैं।
  2. ननि की टीम आवारा कुत्तों को पकड़ती है। उन्हें उसी इलाके में छोड़ना चाहिए,पर दूसरे इलाके में छोड़ देते हैं। इससे वे हिंसक हो जाते हैं।

( जिला प्रशासन की 2019 में बैठक में पशु प्रेमियों ने ये कारण गिनाए थे )

सिर्फ बैठकें…

  1. नवंबर 2015 में बैरागढ़ में 10 साल की बच्ची की आवारा कुत्तों के हमले से मौत हो गई। तब कलेक्टर और निगम आयुक्त की बैठक में कुत्तों को पकड़ने के लिए अभियान का निर्णय हुआ, जो कुछ ही दिन चला।
  2. फरवरी 2018 में गौतम नगर में डेढ़ साल के बच्चे रजा की आवारा कुत्तों के हमले में मौत हुई। कलेक्टर, निगम आयुक्त की बैठक में वॉयलेंट कुत्तों के लिए चार डॉग शेल्टर होम खोलने का निर्णय हुआ।
  3. 2018 में गोकुलधाम कॉलोनी में 6 वर्ष के बच्चे पर कुत्तों ने हमला किया। कलेक्टर-निगम आयुक्त के बीच बैठक हुई। कुत्तों को पकड़ने का अभियान एक हμते ही चला।
  4. मई 2019 में अवधपुरी में 6 साल के संजू को कुत्तों ने मार डाला। निगम आयुक्त, कलेक्टर की बैठक में वाइलेंट डॉग्स का शेल्टर होम में इलाज का निर्णय, शेल्टर होम नहीं खुले।
  5. जून 2019 में तत्कालीन संभागायुक्त की बैठक में नसबंदी और वैक्सीनेशन पर जोर दिया गया।
  6. जनवरी 2022 में आवारा कुत्तों ने बागसेवनिया में 4 साल की बच्ची को नोच दिया था। निगम आयुक्त और कलेक्टर की बैठक हुई। धरपकड़ अभियान कुछ दिन में बंद हो गया।

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