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कहीं शस्त्र पूजा, बड़ों को पान का बीड़ा तो कहीं आंगन में सजाया जाता है मांडना

विजयादशमी पर प्रदेश के हर अंचल की है अपनी अलग परंपरा

प्रीति जैन- दीवाली के मौके पर ही नहीं बल्कि दशहरे पर भी नए कपड़े पहनकर पूजा करने की परंपरा निमाड़, बुंदेलखंड और बघेलखंड में हैं। राजपूत परिवारों में दशहरा बड़े त्योहारों में से एक होता है, जिसमें पूरा कुटुंब मिलकर अस्त्र- शस्त्रों की पूजा करता है व बड़े-बुजुर्गों को सम्मान स्वरूप पान का बीड़ा खिलाया जाता है। यह परंपरा निमाड़ और बुदेलखंड दोनों जगह है। वहीं निमाड़ी संस्कृति में इस दिन दशहरा का मांडना बनाया जाता है। सोने-चांदी के रूप में शमी के पत्ते मंदिर जाकर मां दुर्गा, हनुमानजी व भगवान शंकर को चढ़ाए जाते हैं क्योंकि भगवान राम इन्हीं भगवानों की पूजा करके रावण को पराजित करके विजयी हुए थे और सोने की लंका जीती थी। वहीं इस दिन घर से बाहर घूमने-फिरने की परंपरा भी है क्योंकि इस दिन बाहर जाने वाले को जीत हासिल होती है।

निमाड़ में इस दिन घर से बाहर निकलने की परंपरा

निमाड़ में इस दिन हम सभी नए कपड़े जरूर पहनते हैं। घर के आंगन में दसेरो बनाया जाता है, जिसमें गेरू लिपकर खड़िया से भूमि चित्र बनाते हैं। इसमें रामचंद्र, लक्ष्मण व सीताजी घोड़े पर बैठे बनाए जाते हैं। शाम के समय मांडना की पूजा की जाती है। पान का बीड़ा बुजुर्गों को जरूर पेश किया जाता है। घर आने वाले मेहमानों को भी ‘पान को मान’ के रूप में खिलाया जाता है। सोने-चांदी के रूप में शमी के पत्ते मंदिर जाकर मां दुर्गा, हनुमानजी व भगवान शंकर को चढ़ाए जाते हैं क्योंकि इन्हीं की पूजा करके श्रीराम विजयी हुए थे और सोने की लंका जीती थी। इस दिन घर से बाहर घूमने-फिरने की परंपरा भी है क्योंकि इस दिन बाहर जाने वाले को हमेशा जीत हासिल होती है। – पूर्णिमा चतुर्वेदी, मप्र शिखर सम्मान से अलंकृत लोकगायिका

पोशाक पहनकर करते हैं तलवारबाजी, गज पूजा की परंपरा

बुदेलखंड में दादा-परदादा के जमाने में दशहरे पर कम से कम पांच हाथियों को लाया जाता था और गज पूजा होती थी। मेरे दादाजी राव हनुमंत सिंह बुंदेला, जिन्हें राव की उपाधि भी मिली थी, वे हाथी पर सवार होते थे। सागर में गिलटोरा गांव से हमारे परिवार का संबंध है। इस दिन अस्त्र-शस्त्रों की पूजा होती थी और आज भी होती है। हम इस दिन नए कपड़े पहनते हैं। वहीं खाने में दही की जगह मठ्ठे में बरा यानी बड़ा बनता है। इस दिन महिलाएं पोशाक पहनकर घूंघट में रहकर तलवारबाजी के स्टंट करती थीं। अब हम तलवारबाजी के स्टंट अपने विजयदशमी मिलन समारोह में करते हैं। -वंदना सिंह, उद्यमी

अस्त्र-शस्त्रों की पूजा व पान का बीड़ा पेश करते हैं

रीवा के राजपरिवार से हमारा संबंध है। बघेलखंड में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। मुझे याद है, महाराजा साहब मार्तंड सिंह के दरबार में परिवार के सदस्य दशहरा वाले दिन जाते थे और सम्मान स्वरूप पान का बीड़ा भेंट किया जाता था। फिर बग्गी पर उनकी सवारी निकलती थी तो पूरे रीवावासी शाही सवारी को देखने पहुंचते थे। इस दिन हमारे घर में बंदूकों व तलवारों की पूजा होती थी, जो आज भी होती है। घर के पुरुष साफा और महिलाएं पोशाक पहनती हैं। इसी प्रकार के परिधान आज भी हम दशहरे वाले दिन पहनते हैं और इस दिन सुबह से समय मालपुआ मीठे में जरूर बनाता है। वहीं, शाम के समय दशहरे मिलने जाते हैं। पहले की तरह कोशिश करते हैं कि दशहरे पर पूरा परिवार एक साथ हो इसलिए मैं अपने गृहनगर रीवा आईं हूं, जहां परिवार के साथ दशहरा मनाउंगी। -सुमन सिंह, सचिव, केसरिया राजपूत लेडीज वेलफेयर सोसाइटी

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