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नवरात्रि स्पेशल : ये हैं तीन रूपों वाली मां त्रिपुरा… मन्नतों के नारियल से सजता है माता रानी का दरबार, यहां होती है हर मनोकामना पूरी

धर्म डेस्क। शारदीय नवरात्रि के खास अवसर पर आज हम आपको एक ऐसे चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मनोकामना पूरी करने के लिए सच्चे मन से केवल एक नारियल चढ़ाना होता है। यही वजह है कि मान्यताओं के नारियलों से मां का ये दरबार हमेशा दमकता रहता है। हम बात कर रहे हैं, जबलपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर ग्राम तेवर में स्थित मां त्रिपुर सुंदरी की। यह तीन रूपों वाली माता रानी के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) ने पिछले साल यहां एक प्राचीन बस्ती भी खोजी थी। यही कारण है कि पौराणिक के साथ पुरातात्विक महत्व की वजह से इस पूरे क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया गया है। मान्यता है कि नर्मदा तट से महज सात किलोमीटर दूर स्थित मंदिर की मान्यता है कि, इसके स्मरण मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है, जैसे मां नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं…

नवरात्रि में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़

हर दिन यहां हजारों भक्तों की भीड़ मां की झलक पाने के लिए आती है। बात अगर नवरात्रि की करें तो शारदीय और चैत्र नवरात्र पर मां त्रिपुर सुंदरी में नौ दिन तक आस्था का मेला लगता है। ऐसे में यहां की रौनक देखते ही बनती है। इस मंदिर पर दशहरे के दौरान भी भारी भीड़ आती है। नवरात्रि के अवसर पर इस प्राचीन मंदिर में नौ दिनों तक यहां सुबह से रात तक अलग-अलग अनुष्ठान किए जाते हैं। और हां, यहां आना वाला हर भक्त अपनी मन्नत को लेकर मां के इस पावन धाम में एक नारियल जरूर चढ़ाता है।

त्रिपुरा सुंदरी मां

मान्यता है कि, त्रिपुर सुंदरी मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति भूमि से प्रकट हुईं थीं। यह प्रतिमा केवल एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी अवस्था में है। इसमें तीन माताओं का वास है। एक ही प्रतिमा में महाकाली, महालक्ष्मी और सरस्वती के विराजित रूप ही इस मंदिर को विशेष बनाता है। ऐसी प्रतिमा संसार में आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। मूर्ति के तीनों रूपों को राजेश्वरी, ललिता और महामाया माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिपुरा माता कलचुरी नरेश दानवीर कर्ण की कुलदेवी थीं। ऐसी मान्यताएं हैं कि पुरातन काल में मंदिर के पीछे त्रिपुर नगर बसा हुआ था। यहां त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का आतंक था। भगवान विष्णु ने उसके वध के लिए मां त्रिपुर सुंदरी का पूजन किया। फिर उनके आशीर्वाद से ही भगवान ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया था। इस मंदिर के बारे में किवदंती है कि इसे खुद राजा कर्ण ने बनवाया था। हालांकि मंदिर का वर्तमान स्वरूप 11वीं शताब्दी के आसपास का है। प्राचीन और धार्मिक कहानियों के अनुसार राजा कर्णदेव मां त्रिपुरी के अनन्य भक्त थे। वे मां के पास जाने के लिए अपनी जान देने के लिए रोज तेल से खौलती हुई कड़ाही में कूद जाया करते थे। मां अमृत से उन्हें जीवित कर देती थीं और प्रसन्न होकर राजा के वजन जितना सोना देती थीं। माता ने कर्ण को ये वरदान दिया था, कि वह चाहे जितना भी दान कर ले उसके खजाने में हमेशा सवा मन सोना बना रहेगा।

राजा ने प्रजा के लिए भी मांगा था वरदान

एक बार की बात है कि मां त्रिपुरा ने कर्ण की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने के लिए कहा। कर्ण ने वरदान मांगा कि जिस तरह मैं हमेशा आपकी सेवा करता हूं और मैंने स्वयं को आपके चरणओं में अर्पित कर दिया है, वैसे ही भविष्य में भक्तों को भी आपकी कृपा मिले कोई ऐसा उपाय बताएं। इस पर त्रिपुर सुंदरी मां ने वरदान दिया कि जो भी भक्त श्रद्धा भाव से मेरे दरबार में आकर एक नारियल चढ़ाएगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। तब से त्रिपुर सुंदरी मंदिर में मान्यता का नारियल बांधा जाने लगा और दुनिया भर में इसकी ख्याति फैल गई। कहते हैं कोई संकट, दुख या कष्ट यहां पर श्रद्धा के साथ एक श्रीफल बांधने से ही मिट जाता है।

71 वर्षों से प्रज्वलित है अखंड ज्योति

त्रिपुर सुंदरी मंदिर की एक और विशेषता यहां की अखंड ज्योति जो 1951 से आज तक प्रज्वलित है। लगभग 71 वर्षों से अखंड ज्योति का लगातार जलना अपने आप में आकर्षण का केंद्र है। वैसे इस मंदिर के कई दूसरे नाम भी हैं। जहां यह मंदिर स्थापित है, उस जगह का नाम हथियागढ़ भी रहा है। ऐसे में स्थानीय लोग इसे हथियागढ़ की मां के रूप में माना जाता है। वैसे त्रिपुर का अर्थ होता है तीन शहरों का समूह और सुंदरी का मतलब है मनमोहक महिला। इसलिए इस स्थान को तीन शहरों की सुंदर देवियों का वास भी कहा जाता है। मां जगदंबा,जगत जननी, अंबे, जगदंबे और ना जाने ऐसे कितने नामों से यहां लोग मां को पुकारते हैं।

कितना पुराना है त्रिपुर सुंदरी मंदिर

पुरातत्व विभाग की जांच के अनुसार यह प्रतिमा लगभग 2000 साल पुरानी है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं में इसे 5000 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। त्रिपुर सुंदरी के दर्शन करने के बाद आप नजदीक ही मां नर्मदा के दर्शन कर सकते हैं…. यहां से आर भेड़ाघाट और धुआंधार जलप्रपात जाकर वाटरफॉल का नजारा भी देख सकते हैं। ऐस प्राचीन मान्यता सनातन से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान शंकर के अवतार आदि गुरु शंकराचार्य को उनके गुरु मिले थे और मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर की पहाड़ियों के बीच ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने घोर साधना की थी। तो इस बार अगर आपको अपनी किसी परेशानी या पीड़ा से चाहिए छुटकारा तो आप भी जाइए मां त्रिपुरा के दरबार और बांध आइए एक नारियल मन्नत का।

(इनपुट – सोनाली राय)

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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