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Durga Ashtami 2023 : नवरात्रि की महाअष्टमी आज, 30 साल बाद राजयोग समेत तीन योग का संयोग, जानिए इसका महत्व

Durga Ashtami 2023 : हिंदू धर्म में नवरात्रि का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 15 अक्टूबर 2023 से हो चुका है। शारदीय नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है। इन दिनों भक्त मां को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा-पाठ करते हैं। आज नवरात्रि का आठवां दिन है, जिसे महाअष्टमी या दुर्गा अष्टमी कहा जाता है। इस दिन माता रानी के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा का विधान है। इस बार महाअष्टमी पर 30 साल बाद एक साथ तीन योग बन रहे हैं।

कब है महाअष्टमी?

इस साल अष्टमी तिथि 21 अक्टूबर शनिवार को रात 9 बजकर 53 मिनट से प्रारंभ होगी और अष्टमी तिथि का समापन 22 अक्टूबर को रात 7 बजकर 58 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि की वजह से अष्टमी तिथि 22 अक्टूबर रविवार के दिन ही मनाई जाएगी।

दुर्गा अष्टमी शुभ मुहूर्त

सुबह का मुहूर्त – सुबह 07 बजकर 51 मिनट से सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक।
दोपहर का मुहूर्त – दोपहर 01 बजकर 30 मिनट से दोपहर 02 बजकर 55 मिनट तक।
शाम का मुहूर्त – शाम 05 बजकर 45 मिनट से रात 08 बजकर 55 मिनट तक।
संधि पूजा मुहूर्त – रात 07 बजकर 35 मिनट से रात 08 बजकर 22 मिनट तक।

महाअष्टमी पर एक साथ बन रहे तीन योग

महाअष्टमी 22 अक्टूबर रविवार के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। साथ ही इस बार महाअष्टमी पर 30 साल बाद शश नामक राजयोग और गजकेसरी योग बनने वाला है। इसलिए इस अष्टमी का महत्व और अधिक क्योंकि महाअष्टमी पर 30 साल बाद ये तीनों योग एक साथ बन रहे हैं।

ज्योतिषविदों के अनुसार, इस दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे और गुरु मेष राशि में विराजमान होंगे। जिससे गजकेसरी योग भी बनेगा। साथ ही आज रविवार होने के साथ बहुत शुभ रवि योग भी बन रहा है। महाअष्टमी पर बने इस शुभ योग का मकर सहित 4 राशियों को लाभ मिलने वाला है। इन सभी राशि के लोगों को शश राजयोग के प्रभाव से सभी काम बनते जाएंगे और आर्थिक लाभ भी मिलेगा। मेष, तुला, धनु और मकर राशि के लोगों को महाअष्टमी पर बने शश राजयोग का भरपूर लाभ प्राप्त होगा।

अष्टमी तिथि को क्यों माना गया है ?

दुर्गाष्टमी और नवमी तिथि को विशेषतौर पर मां दुर्गा की पूजा की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। इस दिन देवी के अस्त्रों की पूजा भी की जाती है। इसलिए इसे कुछ लोग वीर अष्टमी भी कहते हैं। कथाओं के अनुसार इसी तिथि को मां ने चंड-मुंड राक्षसों का संहार किया था। इसलिए इस तिथि का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भक्त पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ माता की पूजा अर्चना करते हैं। मां प्रसन्न होकर उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

गौरी नाम कैसे पड़ा ?

भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी, जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं, तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।

मां महागौरी की पूजा विधि

  • महा अष्टमी के दिन स्नान करने के बाद मां दुर्गा की षोडशोपचार विधि अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजा की जाती है।
  • मां गौरी की पूजा पीले या सफेद वस्त्र धारण करके करनी चाहिए। मां के समक्ष दीपक जलाएं और उनका ध्यान करें।
  • पूजा में मां को श्वेत या पीले फूल और मिठाई अर्पित करें। उसके बाद इनके मंत्रों का जाप करें।
  • अगर पूजा मध्य रात्रि में की जाए तो इसके परिणाम ज्यादा शुभ होंगे।
  • अष्टमी तिथि के दिन मां महागौरी को नारियल का भोग लगाना चाहिए। इससे मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।

महाअष्टमी के उपाय

  • अष्टमी तिथि पर मां दुर्गा को लाल रंग की चुनरी में सिक्के और बताशे रख कर चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से मां आपकी सभी मुरादें पूरी करती हैं।
  • इस दिन कन्या पूजन के दौरान 9 कन्याओं को उनके पसंद का भोज कराने के बाद, उनकी जरूरत का कुछ भी लाल रंग का सामान जरूर भेंट करें। ऐसा करने से माता रानी की कृपा बनी रहती है।
  • अष्टमी के दिन किसी सुहागिन स्त्री को लाल रंग की साड़ी और श्रृंगार का सामान भेंट करना चाहिए। ऐसा करने से आपके घर परिवार में सुख-समृद्धि आएगी और घर में धन की आवक बनी रहती है। इसके साथ ही मां दुर्गा भी प्रसन्न होती हैं।

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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