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‘गांधी’ फेम सुरेंद्र राजन नहीं डाल सके आज तक अपना वोट, वोटर लिस्ट में नाम तक नहीं, पॉलिटिक्स से बेखबर

पीपुल्स एक्सक्लूसिव : फिल्म और टीवी में रिकॉर्ड 15 बार गांधी का किरदार निभाने वाले 85 साल के अभिनेता सुरेंद्र राजन ने छोड़ा मुंबई, कोयंबटूर में बिता रहे 'एकांतवास'

अमिताभ बुधौलिया, भोपाल। चुनाव आयोग ने ‘लोकसभा चुनाव 2024’ में 80 वर्ष से अधिक आयु वाले बुजुर्गों के लिए बिना पोलिंग बूथ पर आए पोस्‍टल बैलेट के जरिये वोटिंग का इंतजाम किया है, लेकिन यह खुलासा हैरान करता है कि ‘गांधी’ फेम 85 वर्षीय मशहूर फिल्म अभिनेता और चित्रकार सुरेंद्र राजन अपनी जिंदगी में कभी वोट नहीं डाल पाए। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में जन्मे सुरेंद्र राजन कम उम्र से ही घुमंतू जीवन गुजार रहे हैं। कभी दिल्ली, कभी मारीशस और फिर मुंबई में 20 साल गुजारने के बाद सुरेंद्र राजन ने फिल्ममेकर्स के अव्यावहारिक रवैये को देखते हुए आखिरकार 2020 से कोयंबटूर(तमिलनाडु) में ‘एकांवास’ में चले गए हैं।

कई बार वोट डालने की कोशिश की, मगर नाकाम रहे

सुरेंद्र राजन ने टेलिफोनिक बातचीत में बताया-‘मुझे याद नहीं कि कभी वोट दिया था कि नहीं। चूंकि मैं शुरू ये ही खानाबदोश जिंदगी गुजारते आ रहा हूं, इसलिए मेरे कई ठिकाने रहे। एक-दो मर्तबा वोट डालने गया, तो बताया गया कि वोटर लिस्ट में मेरा नाम नहीं है, क्यों नहीं है, ये मुझे नहीं पता।’

बता दें सुरेंद्र राजन ने फिल्म और टीवी में 15 बार गांधी का किरदार निभाया है। सुरेंद्र राजन को पहली बार गांधी बनाया था भारतीय सिनेमा की पहली आस्कर अवार्ड कास्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया ने।

टीवी-अखबार से दूर, इसलिए पॉलिटिक्स में क्या चल रहा, नहीं पता

सुरेंद्र राजन खुद को बाहरी दुनिया से लगभग काट-सा चुके हैं। उनके पास सिर्फ मोबाइल है, जिसके जरिये संपर्क हो जाता है। ‘लोकसभा चुनाव-2024’ में गांधी-गोड़से, वीर सावरकर, हिंदू-मुस्लिम मुद्दों का कितना असर होगा, इस पर राजन साफगोई से कहते हैं-‘सच कहूं, तो मुझे नहीं पता कि पॉलिटिक्स में क्या चल रहा है, देश-दुनिया में क्या हो रहा है। मैं टीवी नहीं देखता…अखबार भी नहीं पढ़ता। कभी-कभार कोई परिचित या मित्र खैर-खबर दे देते हैं, तो थोड़ा-बहुत मालूम चल जाता है। कोयंबटूर में मेरे आसपास तमिल भाषी हैं। मुझे टूटी-फूटी तमिल आती है, मगर पड़ोसियों से भी कम संपर्क होता है। वैसे आजकल लोग मर्यादाएं भूल चुके हैं। लोगों को नहीं पता कि गांधी का क्या महत्व है।’

क्या उन्होंने रणदीप हुड्डा अभिनीत ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ देखी है? इस सवाल पर राजन खुलासा करते हैं-‘शायद 40 साल पहले बच्चों के साथ कोई फिल्म देखी होगी, मुझे नहीं मालूम ये कौन-सी फिल्म है।’

मुंबई में उतना मान-सम्मान नहीं मिला, तो छोड़ दिया

सुरेंद्र राजन बताते हैं-‘कोरोना(2020) के समय घुटनों में तकलीफ होने पर किसी के कहने पर इलाज कराने कोयंबटूर आया था। फिर लौटकर मुंबई नहीं गया।’ वे कहते हैं-‘मैंने कितनी फिल्मों-टीवी में काम किया, अब याद नहीं। 7 महीने पहले एक एड करने मुंबई गया था। मैंने महसूस किया कि फिल्मी दुनिया के लोग कलाकारों को उतनी इज्जत नहीं देते, जितनी कि वे उसके हकदार हैं। वे उन्हें सिर्फ मजदूर समझते हैं। उन्हें मालूम है कि मुंबई में कलाकारों की कोई कमी नहीं है। कई लोग जवानी में सपने लेकर मुंबई आते हैं और बुढ़ापे तक कुछ हासिल नहीं कर पाते।

हालांकि मैंने हमेशा अभिनय को मजदूरी के तौर पर देखा। अब मैं 85 साल का हो चुका हूं। मुझे पैसों का कोई लालच नहीं। इसलिए अब बची-खुची जिंदगी सुकून से बिताना चाहता हूं। कोयंबटूर में किराए के घर में रहता हूं। पेंटिंग करता हूं।’

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