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धर्म और विज्ञान : आध्यात्मिक ही नहीं, वैज्ञानिकता की भी परिणीति है नवरात्रि

न्यूसी समैया, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु शास्त्राचार्य

पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा करने के परिभ्रमण पथ में चार संधियां आती हैं। इन्हीं चारों संधियों में ऋतु परिवर्तन होता है। यह संधियां जब जब आती हैं, तभी नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। नवरात्रि का त्योार वर्ष में चार बार आता है। यह चैत्र ,आषाढ़, अश्विन और माघ के महीनों में पड़ता है। इनमें से चैत्र और आश्विन की नवरात्रि को प्रकट नवरात्रि और माघ और आषाढ़ में पड़ने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि का महत्व तांत्रिक शक्तियों के लिए विशेष रूप से होता है, जबकि गृहस्थों के लिए प्रकट नवरात्रि विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

नवरात्रि शब्द की उत्पत्ति ‘नव अहोरात्र’ शब्द से हुई है। अहोरात्र का शाब्दिक अर्थ है दिन और रात्रि। परंतु हम इसमें सिर्फ रात्रि शब्द का ही प्रयोग करते हैं दिन का नहीं। आइए हम इसका कारण जानते हैं। नवरात्रि का महत्व रिद्धि-सिद्धि और साधना के लिए है। नवरात्रि में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति को संचित करने और उसे प्रबल करने के लिए अनेक प्रकार के पूजा-पाठ, योग साधना आदि करते हैं। यहां तक कि साधक पूरी रात सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर बीज मंत्रों के जप और अन्य पद्धतियों से विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

लेकिन, सवाल है कि यह रात्रि में ही क्यों? यह एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य है कि रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध स्वतः समाप्त हो जाते हैं। ध्वनि, रेडियो और तरंगे आदि दिन की अपेक्षा ज्यादा दूर तक जाती हैं। इसका कोलाहल के अलावा एक कारण यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणों द्वारा उत्पन्न अवरोध खत्म हो जाता है। सूर्य की किरणें विभिन्न तरंगों को आगे बढ़ने से रोकती हैं। आपने महसूस किया होगा कि रात्रि में रेडियो चैनल दिन की अपेक्षा ज्यादा साफ सुनाई देते हैं और आवाज भी दूर तक सुनाई देती है।

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ऐसे कई चैनल, जिनके सिग्नल दिन में नहीं आते, वे रात में कैच करने लगते हैं। अब जिस प्रकार सूर्य की किरणें रेडियो और ध्वनि तरंगों को रोकती हैं, उसी प्रकार जब मंत्र जप आदि से उत्पन्न तरंगों पर भी प्रभाव पड़ता है और रात्रि में इनके मार्ग के अवरोध समाप्त हो जाते हैं। इसलिए हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इन सभी सिद्धियों के लिए दिन की अपेक्षा रात्रि का समय अधिक सार्थक और महत्वपूर्ण बताया है।

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नवरात्रि में साधक उपवास भी रखते हैं और इसका भी एक वैज्ञानिक कारण है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि नवरात्रि ऋतु परिवर्तन के समय आती है, और यह एक ऐसा समय होता है जब विभिन्न रोगों के रोगाणुओं के आक्रमण की संभावना सर्वाधिक होती है। ऋतु संधि में ही सर्वाधिक शारीरिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं और विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैलती है। अतः इस समय शरीर को स्वस्थ और शुद्ध रखने के लिए संयमित आहार और उपवास का प्रावधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है। इनसे शरीर का शुद्धिकरण होता है। अतः नवरात्रि पूर्णत: वैज्ञानिक रूप से शरीर और मन के शुद्धिकरण का समय है।

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(न्यूसी समैया ने इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोलॉजी (भारतीय विद्या भवन) नई दिल्ली से ज्योतिष अलंकार की डिग्री ली है। ज्योतिष शास्त्र विशेषज्ञ, ज्योतिष शिरोमणि सम्मान से पुरस्कृत न्यूसी 25 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। वह स्कूल ऑफ एस्ट्रोलॉजी की डायरेक्टर भी हैं।)
मोबाइल नंबर 7470664025

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