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धर्म और विज्ञान : परमाणु रिएक्टर की तरह ही असीम ऊर्जा का स्रोत है शिवलिंग, जानें क्यों चढ़ाते हैं जल

न्यूसी समैया, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु शास्त्राचार्य

सनातन धर्म में आदि काल से ही शिवलिंग का विशेष महत्व रहा है। इसके पीछे आध्यात्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक प्रामाणिकता भी परिलक्षित होती है। शिवलिंग को ऊर्जा का अपार स्रोत माना गया है और इसे सदैव ठंडा रखने के लिए सतत जलधारा प्रवाहित करने का प्रावधान है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर रिएक्टर की संरचना भी शिवलिंग के समान ही की है। शिवलिंग की तरह ही इससे निकलने वाली अपार रेडिएशन को रोकने के लिए इस पर भी सतत जलवप्रवाह किया जाता है। इससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि शिवलिंग के अंदर न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह एक असीम ऊर्जा का भंडार छिपा हुआ है।

जब सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई के दौरान कालीबंगा और स्थलों पर पक्की मिट्टी के शिवलिंग मिले तो उससे यह प्रमाणित हुआ कि शिवलिंग की पूजा लगभग 3,500 ईसा पूर्व से 2,300 ईसा पूर्व में भी होती थी।  मानव विज्ञानी क्रिस्टोफर जॉन फुलर ने लिखा है कि भारतीय सभ्यता में अधिकांश मूर्तियां मानव रूपी मिलती हैं, परंतु शिवलिंग ही मात्र एक अपवाद है।

जब हमारे भू वैज्ञानिक और पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसका अध्ययन किया तो इससे जुड़े कई वैज्ञानिक तथ्य सामने आए। उनमें से एक यह है कि शिवलिंग एक न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह है। अगर हम भारत का रेडियोएक्टिव नक्शा उठाकर देखें तो हम पाएंगे कि सरकार द्वारा स्थापित न्यूक्लियर रिएक्टर के साथ-साथ सभी ज्योतिर्लिंगों पर भी सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। तो, क्या हम यह इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि ज्योतिर्लिंग एक तरह का न्यूक्लियर रिएक्टर है। आइए इस पर एक शोधपरक तुलना करते हैं।

शिवलिंग की आकृति बेलनाकार होती है, ठीक उसी प्रकार हम विश्व के किसी भी न्यूक्लियर रिएक्टर जैसे कि भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर(मुंबई) को देखें तो उसकी संरचना भी बेलनाकार ही है।जिस प्रकार शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने की परंपरा है ठीक उसी प्रकार न्यूक्लियर रिएक्टर को भी ठंडा रखने के लिए सतत जल प्रवाह किया जाता है। देश में अधिकतर प्राचीन शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं, जहां जल का समुचित भंडार हो। जैसे, नदी, तालाब, झीलख् समुद्र आदि। विश्व के सभी न्यूक्लियर प्लांट भी पानी के समीप ही हैं।  इसके अलावा शिवलिंग पर चढ़ाएं हुए जल को किसी भी और उपयोग में नहीं लाया जाता, यहां तक कि इसे प्रसाद के रूप में भी उपयोग नहीं किया जाता। ठीक वैसे ही न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिए जिस जल का उपयोग करते हैं, उसे भी किसी और प्रयोग में नहीं लेते। उसे दूर ही रखा जाता है। ठीक उसी प्रकार शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल जहां से निष्कासित होता है उसे लांघा नहीं जाता। अतः शिवलिंग की हम पूरी परिक्रमा नहीं करते हैं। इसके अलावा शिवलिंग पर बेलपत्र और धतूरा आदि चढ़ाने की परंपरा है। कुछ समय पूर्व वैज्ञानिक शोध से यह निष्कर्ष निकला कि बेल के पत्तों में रेडियोएक्टिव विकिरण को अवशोषित करने की क्षमता होती है। यानी कि वस्तुतः शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है और ऊर्जा का स्रोत है, जिससे सतत ऊर्जा का उद्भव होता है।

(न्यूसी समैया ने इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोलॉजी (भारतीय विद्या भवन) नई दिल्ली से ज्योतिष अलंकार की डिग्री ली है। ज्योतिष शास्त्र विशेषज्ञ, ज्योतिष शिरोमणि सम्मान से पुरस्कृत न्यूसी 25 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। वह स्कूल ऑफ एस्ट्रोलॉजी की डायरेक्टर भी हैं।)
मोबाइल नंबर 7470664025

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