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रॉकेट SSLV-D1 की लॉन्चिंग में भोपाल की 15 छात्राओं की अहम भूमिका, साधारण परिवार से रखती हैं ताल्लुक

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रविवार को अपने पहले स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल SSLV-D1 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च कर नया इतिहास रच दिया है। SSLV-D1, 750 छात्रों द्वारा निर्मित सैटेलाइट ‘आजादी सैट’ और पृथ्वी अवलोकन उपग्रह-02′ (EOS-02) को भी अपने साथ ले गया है। देश की सबसे छोटे सैटेलाइट रॉकेट एसएलवी की प्रोग्रामिंग में मप्र की राजधानी भोपाल की 15 छात्राओं का बड़ा योगदान रहा है।

भोपाल की बेटियों ने किया कमाल

श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने वाले सैटेलाइट के इंस्ट्रूमेंट की प्रोग्रामिंग में भोपाल की छात्राएं भी शामिल थी। इस प्रोजेक्ट में भोपाल की शायस्ता, नैंसी, निहारिका और प्रियंका समेत 15 छात्राएं हिस्सा रही हैं, जो कि एमएलबी गर्ल्स हायर सेकंडरी स्कूल की पढ़ने वाली हैं। साथ ही ये सभी साधारण परिवार से वास्ता रखती हैं। कोई पेट्रोल पंप कर्मचारी, मजदूर, ड्राइवर, मैकेनिक जैसे साधारण परिवारों से ताल्लुकात रखती हैं।

CM शिवराज ने दी बधाई

देश की इस कामयाबी पर मप्र के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मप्र की बेटियों को बधाई दी है।

प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने दी बधाई

देश को मिली इस कामयाबी पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने ट्वीट कर बेटियों को बधाई दी। उन्होंने लिखा कि ISRO द्वारा पहला SSLVD1 लांच करके एक बार फिर इतिहास रचा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में देश के वैज्ञानिक नित नये आयाम स्थापित कर रहे हैं। सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आजादी के अमृत महोत्सव में देश के 75 स्कूलों से 750 छात्राओं द्वारा बनाई गई Azaadi SAT सेटेलाइट भी आज लांच की गई। इसमें भोपाल की 15 बेटियों का भी अहम योगदान है। मैं सभी बेटियों को बधाई देता हूं। नारी सशक्तिकरण का यह एक जीता जागता उदाहरण है।

SSLV-D1 देश का सबसे छोटा रॉकेट

बता दें कि SSLV-D1 देश का सबसे छोटा रॉकेट है। 110 किलो वजनी SSLV तीन स्टेज का रॉकेट है जिसके सभी हिस्से सॉलिड स्टेज के हैं। इसे महज 72 घंटों में असेंबल किया जा सकता है। जबकि बाकी लॉन्च व्हीकल को करीब दो महीने लग जाते हैं।

सैटेलाइट्स से डेटा मिलना बंद हो गया

देश के सबसे छोटे रॉकेट की लॉन्चिंग तो सफल रही लेकिन मिशन के अंतिम चरण में वैज्ञानिकों को थोड़ी निराशा हाथ लगी है। दरअसल, इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया है कि SSLV-D1 ने सभी चरणों में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन किया और सैटेलाइट को कक्षा में भी पहुंचा दिया। लेकिन मिशन के अंतिम चरण में, कुछ डाटा की क्षति हो रही है जिससे सैटेलाइट से संपर्क टूट गया है। इसरो मिशन कंट्रोल सेंटर लगातार डाटा लिंक हासिल करने का प्रयास कर रहा है। हम जैसे ही लिंक स्थापित कर लेंगे फिर देश को सूचित करेंगे।

आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर बनाया

माइक्रो श्रेणी के EOS-02 उपग्रह में इंफ्रारेड बैंड में चलने वाले और हाई स्पेशियल रेजोल्यूशन के साथ आने वाले आधुनिक ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग दिए गए हैं और इसका वजन 142 किलोग्राम है। EOS-02 10 महीने के लिए अंतरिक्ष में काम करेगा। वहीं आजादी सैट आठ किलो का क्यूबसैट है, इसमें 50 ग्राम औसत वजन के 75 उपकरण हैं। इन्हें ग्रामीण भारत के सरकारी स्कूलों की छात्राओं ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर इसरो के वैज्ञानिकों की मदद से बनाया। वहीं स्पेस किड्स इंडिया के विद्यार्थियों की टीम ने धरती पर प्रणाली तैयार की जो उपग्रह से डाटा रिसीव करेगी। यह सैटेलाइट नई तकनीक से लैस है जो कि फॉरेस्ट्री, एग्रीकल्चर, जियोलॉजी और हाइड्रोलॉजी जैसे क्षेत्रों में काम करेगा।

SSLV के फायदे

  • सस्ता और कम समय में तैयार होने वाला।
  • 34 मीटर ऊंचे एसएसएलवी का व्यास 2 मीटर है, 2.8 मीटर व्यास का पीएसएलवी इससे 10 मीटर ऊंचा है।
  • यह SSLV छोटे सैटेलाइट को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने में सक्षम होगा।
  • एसएसएलवी (SSLV) की लॉन्चिंग से पावरफुल पीएसएलवी छोटे सेटेलाइट्स के लोड से मुक्त हो जायेगा। क्योंकि वह
  • सारा काम अब SSLV ही करेगा।

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