
राजीव सोनी-भोपाल। ग्लोबल वार्मिंग के खतरे अब मध्यप्रदेश में भी स्पष्ट दिखने लगे हैं। साल-दर-साल बिगड़ते मौसम के मिजाज के चलते शहर भट्टी की तरह सुलगने लगे हैं। हीट स्ट्रोक व स्ट्रेस से मौतें बढ़ गई है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में मप्र के टीकमगढ़, दतिया, निवाड़ी, पन्ना, छतरपुर, सीधी और सिंगरौली को डेंजर जोन में शामिल किया है। बेतहाशा बढ़ते टेम्प्रेचर से ये शहर 48 डिग्री से ऊपर की सूची में आ गए हैं। ग्वालियर भी रिस्क जोन में बना हुआ है। दमोह, भिंड और खजुराहो-नौगांव दशकों से सेंसिटिव हैं, यहां तो 1993 में ही प्रचंड गर्मी ने तापमान 49.1 डिग्री पारा छू लिया था।
मौसम वैज्ञानिकों ने स्टडी में पाया है कि जलवायु परिवर्तन से गांव-शहरों का ईको सिस्टम बिगड़ने लगा है। इसका सीधा असर जीव-जंतु, पशु-पक्षियों के साथ हरियाली और कृषि पर पड़ा है। बहुतायत से पाए जाने वाला हरे रंग के टिड्डे, तितलियां तेजी से घटी हैं। इन पर निर्भर रहने वाले रेप्टाइल्स और पक्षियों के सामने भोजन का संकट खड़ा हो गया है। यही स्थिति कबूतर, गौरैया, गिद्ध और सारस जैसे पक्षियों के सामने भी है।
एसडीएमए ने सौंपी रिपोर्ट: स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एसडीएमए) ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट में इन खतरों का जिक्र करते हुए गाइडलाइन भी सौंपी है। एडवायजरी में हीट स्ट्रोक और लू-लपट से बचाव और जनजागरुकता के लिए सरकारी महकमों को भी उपाय सुझाए गए हैं। शासन ने कुछ सुझावों पर अमल भी किया है।
ऐसा रहा गर्मी का चक्र
भीषण गर्मी का साइकल 4-5 साल में बदल रहा है। वर्ष 2000, 2003, 2009, 2016 के बाद अब 2023 में यह फिर घातक बन कर उभरी है।
कई शहरों में 48 डिग्री
मप्र में आईएमडी के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. वेद प्रकाश सिंह का कहना है कि भीषण गर्मी से मप्र के कई शहर डेंजर जोन में हैं। हीट स्ट्रोक से मौतें बढ़ी हैं। ग्वालियर, बुंदेलखंड और विंध्य अंचल के कई जिलों में तापमान 48 डिग्री से ऊपर जाने लगा है। वर्ष 2100 तक धरती का तापमान 2 डिग्री बढ़ने की आशंका है पर डेढ़ डिग्री तो 2030 तक बढ़ जाएगा।
यह है हीट एक्शन प्लान
- शासकीय/सार्वजनिक भवनों में कूल रूफ टेक्नोलॉजी लागू हो।
- शिक्षकों व स्कूली बच्चों को बचाव का प्रशिक्षण दें।
- मनरेगा व विकास योजना के श्रमिकों का समय बदलें।
- श्रमिकों को लू से बचने की जानकारी दें, शीतल जल दें।
- रेपिड रिस्पॉन्सस टीम गठित करें।
- सार्वजनिक स्थलों पर भरपूर पौधरोपण कराएं। जंगल में पशु- पक्षियों के जल की व्यवस्था हो ।
- पुलिस/ट्रैफिक पुलिस के कार्य स्थल पर शेड-जल उपलब्ध कराएं।