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कभी 8% तक वोट पाने वाली बसपा 3 फीसदी तक सिमटी

भाजपा और कांग्रेस में शिफ्ट हो रहा है वोट

भोपाल। प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान हर बार की इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है, पर अगर आंकड़ों पर गौर किया जाए तो तीसरा मोर्चा बसपा, सपा और गोंगपा सहित अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है। प्रदेश में 1991 के बाद 1996 में आठ प्रतिशत से अधिक वोट पाने वाली बसपा को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में तीन प्रतिशत से भी कम मत मिले थे।

उसका वोट बैंक भाजपा और कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो रहा है। इसके पहले की स्थिति देखी जाए तो वर्ष 1991 में मप्र से बसपा का एक सांसद सदन में पहुंचा। इसके बाद 1996 में दो और 2009 में यह घटकर फिर से एक पर आ गया और इसके बाद से कोई भी सीट बसपा नहीं निकाल पाई और वोट बैंक भी घटता गया।

राजनीतिक दल भी बढ़े

प्रदेश में वर्ष 1999 में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टियों की संख्या 40 के नीचे थी। इसके बाद से प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाग लेने वाले राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ रही है, जो पिछले चुनाव में बढ़कर 80 तक पहुंच गई। 4 से 6 प्रतिशत वोट लेकर बिगाड़ते हैं समीकरण: पिछले चार लोकसभा चुनाव में भले ही कोई निर्दलीय या छोटे दल का उम्मीदवार नहीं जीता हो पर इन्हें हर चुनाव में चार से छह प्रतिशत तक वोट मिलते रहे हैं। इससे भाजपा व कांग्रेस का समीकरण बिगड़ जाता है।

ईवीएम है इसका कारण

ईवीएम के कारण भाजपा का वोट सात की जगह पर सत्तर दिखने लगता है। इसी के चलते जब तक ईवीएम से वोटिंग हो रही है तब तक बसपा सहित अन्य दलों का का वोट प्रतिशत कम होता रहेगा। -सीएम गौतम, बसपा,कार्यालय मंत्री मप्र

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