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गर्मियों में पक्षियों के लिए सूखी लौकी और लकड़ी से तैयार हो रहे बर्ड नेस्ट

गौरैया, रॉबिन, मैना और नीलकंठ हैंडमेड घोंसलों में आते हैं रहने

प्रीति जैन – यूं तो पक्षी अपना घोंसला पेड़ों की डाल पर खुद ही बनाना पसंद करते हैं, लेकिन कई बार वे रोशनदान और खिड़कियों में भी अपना घोंसला तैयार कर लेते हैं, लेकिन कई बार उनके यह घरौंदे गिर जाते हैं। प्रकृति के प्रति प्रेम का भाव रखने वाले लोग अब खुद अपने हाथों से बर्ड नेस्ट तैयार करते देखे जा रहे हैं जिसमें वे बड़े कलात्मक ढंग से इसे तैयार करते हैं। खासतौर पर गर्मी के मौसम में हमारे आसपास फुदकती नजर आने वाली गौरेया के लिए घोंसले बनाने में लोगों की रुचि दिख रही है ताकि वे अपने दाने-पानी के लिए उड़कर उनके घर तक आ सके। इसे लेकर समर एक्टिविटी वर्कशॉप से लेकर कॉलेजों में गर्मियों के मद्देनजर घोंसला बनाना भी सिखाया जा रहा है। घर में लगा हुआ एक कृत्रिम घोसला बच्चों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाता है।

प्लास्टिक व मेटल से न बनाएं घोंसले

सबसे बढ़िया तरीका है कि गत्ते से घोंसला बनाए जिसमें आगे की तरफ एक छेद रखें। यदि गौरैया के लिए घोंसला है तो छेद छोटा होगा और रॉबिन या मैना के लिए है तो छेद थोड़ा बड़ा रखते हैं ताकि वे उसमें आसानी से घुस सके। वहीं पीछे की तरफ एक छोटा छेद रखें ताकि वेंटिलेशन की व्यवस्था रहे। इसे बालकनी व गैलरी में लटका सकते हैं जिसमें पक्षी कई बार अंडे दे पाते हैं। वर्कशॉप में यह घोंसले बनाना सिखाते हैं। -मोहम्मद खालिक, पक्षी विशेषज्ञ

सूखी लौकी से बना रही हूं घोंसले

मैंने सूखी लौकी के जरिए बर्ड नेस्ट बनाया है। इसमें भीतर अंधेरा है और मैंने इसे फेविकोल व कलर की कोटिंग से मजबूत किया है। इसके ऊपर पत्तियों के जरिए छपाई की है। इसे सुरक्षित स्थान पर लगाया है ताकि गौरैया या अन्य कोई पक्षी इसमें सुरक्षित महसूस करे। इसे लगाने के बाद गौरैया इसके आसपास नजर आने लगी है। इस तरह के और भी हैंगिंग नेस्ट तैयार कर रही हूं। -रक्षा दुबे चौबे, सहायक आयुक्त, राज्य जीएसटी

ढाई साल से घोंसले बनाना सिखा रही हूं

पिछले ढाई वर्ष में अपने विद्यार्थियों के साथ मिलकर अलग-अलग तरह के घोंसले बनाए तथा बच्चों ने इन्हें अपने घरों में लगाया। गौरैया के बच्चों को हाई प्रोटीन की आवश्यकता होती है जिसके लिए वह हमारे बगीचे, नाले और आसपास के पेड़-पौधों से लार्वा को चुन-चुन कर अपने बच्चों को खिलाती है। इस तरह से इन लार्वा में पनपने वाले बैक्टीरिया,वायरस हमारी खाद्य श्रृंखला में नहीं आ पाते और हम बीमारी से बचे रहते हैं। -डॉ. अर्चना शुक्ला, टीचर व बर्ड नेस्ट डिजाइनर

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