जबलपुरमध्य प्रदेश

सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर जनता के लिए खुलेगा स्मारक, अंग्रेजों ने नेताजी को दो बार किया था कैद, बैरक में आज भी हैं उनकी यादें

जबलपुर। मप्र सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर जबलपुर सेंट्रल जेल की एक बैरक को जनता के लिए खोलने की घोषणा की है। अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई के दौरान जबलपुर सेंट्रल जेल के एक बैरक में नेताजी को छह माह तक रखा गया था। इस बैरक में नेताजी से जुड़ी कई यादें हैं।

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सप्ताह में दो दिन खुलेगा स्मारक

जानकारी के मुताबिक, स्मारक को सप्ताह में दो दिन शनिवार और रविवार को खोला जाएगा। इसका समय सुबह 10 से दोपहर 2:30 बजे तक होगा। इस स्मारक को म्यूजियम का रूप दिया गया है। जबलपुर केंद्रीय जेल के जिस बैरक में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 1933 और 1934 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छह महीने तक रखा गया था।

संग्रहालय में बंदियों ने नेताजी की पेंटिंग बनाई है।

बैरक में आज भी मौजूद हैं वस्तुएं

दिल्ली के बाद बोस को समर्पित देश का यह दूसरा और एमपी का पहला संग्रहालय होगा। जबलपुर की सेंट्रल जेल का नाम 2007 में नेताजी के नाम पर रखा गया था। वहीं, जेल की जिस बैरक में उन्हें अंग्रेजों ने रखा था, उस बैरक में मौजूदा वस्तुएं आज भी उसी हाल में रखी हुई हैं। नेताजी की तरफ से उपयोग की गई वस्तुएं जैसे उनके कपड़े, बेड़ियां, उनका हस्तलिखित पत्र, उनकी जेल यात्रा से संबंधित पत्र और शिलालेख रखे गए हैं।

बैरक में जाने के लिए बनाया अलग रास्ता

नेताजी के हस्ताक्षर वाला जेल रजिस्टर और उनके नाम का वारंट आज भी जबलपुर जेल में सुरक्षित रखा गया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केंद्रीय कारागार में स्थित सुभाष वार्ड को आम जनता को देखने के लिके खोला जा रहा है। इसके लिए जेल के मुख्यद्वार से अलग एक द्वार बनाया गया है, जहां से आम जन नेताजी की बैरक को आसानी से देख सकेंगे।

संग्रहालय नेताजी की शयन पटि्टका और बेड़ियों जिनमें बांधकर रखा गया था।

जबलपुर से नेताजी का है ये रिश्ता

1938 में त्रिपुरी कांग्रेस के अधिवेशन में नेताजी जबलपुर आए थे। इसके अलावा नेताजी का जबलपुर की केंद्रीय जेल से भी गहरा रिश्ता रहा है। ब्रिटिश सरकार ने जब उन्हें सजा सुनाई थी, तब नेताजी 22 दिसंबर 1931 को इसी जेल में लाए गए थे और 16 जुलाई 1932 को उन्हें मुंबई की जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके बाद नेताजी को अंग्रेजों ने 18 फरवरी 1933 को जबलपुर जेल में रखा और 22 फरवरी 1933 को मद्रास भेज दिया था।

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