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मजदूर मां की बेटी आशा ने 310 दिन में पूरी की 25 हजार किमी की साइकिल यात्रा

प्रदेश के राजगढ़ जिले के गांव नाटाराम की रहने वाली 24 वर्षीय आशा ने हासिल की सफलता

प्रदेश के राजगढ़ जिले के गांव नाटाराम की रहने वाली 24 वर्षीय आशा मालवीय ने अपनी मां के उस सपने को पूरा किया है, जिसे लेकर वो लगभग 10 महीने पहले साइकिल यात्रा पर निकली थीं। आशा ने 310 दिन की साइकिल यात्रा में भारत दर्शन कर 25000 किमी की यात्रा अकेले पूरी की है। खेतों में मजदूरी करके अपनी दो बेटियों की परवरिश करने वाली राजुबाई अपनी बेटी की इस सफलता से भावुक होकर कहती हैं, मैं अपनी बेटी को कुछ नहीं दे सकती थी, सिवाए प्रोत्साहन देने के। मप्र टूरिज्म बोर्ड के सहयोग से देश के 28 राज्यों में साइकिल यात्रा कर भोपाल लौटी आशा ने महिलाओं हेतु सुरक्षित मध्यप्रदेश का संदेश इस यात्रा के माध्यम से दिया।

आशा कहती हैं, इस दौरान नार्थ-ईस्ट के बाद मेरी यात्रा का जिम्मा आर्मी द्वारा उठाया गया। अपनी यात्रा के दौरान अलग-अलग राज्यों के 23 राज्यपालों व 20 सीएम से मिली। अभी तक मप्र के सीएम शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात नहीं हो पाई है। इस मौके पर प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति और प्रबंध संचालक टूरिज्म बोर्ड शिव शेखर शुक्ला ने आशा मालवीय को सम्मानित किया। अपर प्रबंध संचालक टूरिज्म बोर्ड विवेक श्रोत्रिय ने आशा को प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश के पर्यटन स्थलों में महिला पर्यटकों की संख्या में वृद्धि करने व भयमुक्त वातावरण प्रदान करने के उद्देश्य से पर्यटन विभाग द्वारा महिलाओं हेतु सुरक्षित पर्यटन स्थल परियोजना का क्रियान्वयन व सुरक्षित, साहसिक पर्यटन को स्थापित करने के प्रयास कर रहे हैं।

पैर के पंजे के ऊपर से निकला सांप

आशा ने बताया मैंने अपनी यात्रा में कई बार 28 घंटे तक लगातार साइकिल चलाई और जर्नी का 30 फीसदी हिस्सा रात को कवर किया। इस दौरान मुझे किसी अप्रिय स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा बल्कि मुझे पूरा भारत सुरक्षित लगा, बस रास्ते में मिलने वाले टॉयलेट्स साफ नहीं मिले। एक रात को मैंने देखा कि मेरे पैर के पंजे के ऊपर से सांप निकल रहा था, तो मैं चुपचाप रूक गई और उसको निकलने दिया।

200 रुपए कमाने वालों ने मुझे दिए 500 रुपए

इस दौरान रास्ते में पड़ने वाले पुलिस स्टेशन से संपर्क करके सुनसान रास्तों को पार किया। मेरी इस जर्नी की सबसे खूबसूरत और यादगार बात यह रही कि रास्ते में मुझे कई ऐसे ट्रक ड्राइवर और मजदूरी करने वाले लोग मिले जिन्होंने मेरी यात्रा से प्रभावित होकर मुझे 500-500 रुपए दिए, जबकि शायद वो खुद पूरे दिन में मुश्किल से 200 रुपए कमा पाते होंगे। मेरे पास इस यात्रा के लिए कोई खास रकम नहीं थी, बस जो रास्ते में मिलता गया उसी से गुजारा करती गई।

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