छिंदवाड़ा। जिले के पांढुर्णा में आज गोटमार मेले की शुरुआत हो चुकी है। यहां पिछले कई सालों से आमने, सामने से पत्थरों की बौछार होती है। इस खूनी संघर्ष में कई लोग घायल तो कुछ लोग गंभीर घायल भी होते हैं। लेकिन यह परम्परा लंबे समय से चली आ रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जब से इस परम्परा की शुरुआत हुई है तब से लेकर अब तक 12 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
इस वर्ष आयोजन में कोरोना गाइडल्लाइन को देखते हुए क्षेत्र में धारा 144 लगाई गई है। प्रशासन अलर्ट और भारी पुलिस बल भी तैनात है। बावजूद इसके प्रशासन की तमाम कवायदों के बाद भी ये खूनी खेल बदस्तूर जारी है।
आज सुबह से ही पांढुर्ना-सावरगांव स्थित जाम नदी के तट पर दो पक्षों के बीच एक -दूसरे पर पत्थर बरसने का गोटमार मेले का आयोजन शुरू हो गया है। इस गोटमार मेले में पहले भी कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं तो कई लोग दिव्यांगता भरा जीवन यापन कर रहे हैं। गोटमार मेले का स्वरूप बदलने मानव आयोग, उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में जिला प्रशासन को सख्त निर्देश होते हैं, लेकिन विगत कई वर्षों के प्रयासों के बाद जिला प्रशासन आखिरकार गोटमार मेले का स्वरूप बदल पाने में नाकाम साबित रहा है।
गोंड राजा के समय का इतिहास भी है काफी प्रचलित
पांढुर्णा गोटमार मेले का इतिहास सालों पुराना है। इसे लेकर कई कहानियां और मान्यता हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस गोटमार मेले का इतिहास पांढुर्णा के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम कहानी से जुड़ा हुआ है। वहीं गोंड राजा जाटवा नरेश और अंग्रेजो के बीच साम्राज्य की लड़ाई में गोंड राजा के हथियार खत्म हो जाने के चलते जाटवा नरेश की सेना ने जाम नदी के किनारे पत्थरों के सहारे अंग्रेजों से कई दिनों तक गोटमार कर अपना साम्राज्य बचने का प्रयास किया था। यह आज गोटमार मेला धार्मिक आस्था का विकराल रूप ले चुका है।