
भोपाल। प्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग का सालाना बजट 24 हजार करोड़ रुपए का है, बावजूद स्कूलों में शिक्षा का स्तर ठीक नहीं है। स्थिति यह है कि 8वीं कक्षा के 62 फीसदी स्टूडेंट्स गुणा-भाग भी नहीं कर पा रहे हैं। वहीं 42 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं हैं। ‘असर-2024’ द्वारा मंगलवार को जारी 14वीं राष्ट्रीय रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।
28 राज्यों के सरकारी स्कूलों का सर्वे
‘असर’ (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) द्वारा सत्र 2024 के दौरान देश के 28 राज्यों के पहली से कक्षा 8वीं तक के सरकारी स्कूलों का सर्वे किया गया। इसमें देश के 605 ग्रामीण जिलों के 17,997 गांवों में 6.49 लाख से अधिक बच्चों के बीच सर्वे किया गया। सर्वे में 3 से 16 वर्ष तक के बच्चे शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, मप्र में सरकारी स्कूलों के 8वीं के सिर्फ 38 फीसदी स्टूडेंट ही गुणा-भाग करने में सक्षम हैं, जबकि इसी कक्षा के 66.9 फीसदी बच्चे ही दूसरी का पाठ पढ़ पाए। यानि करीब 33 फीसदी बच्चे दूसरी का पाठ भी पढ़ने में अक्षम हैं। दोनों ही मामलों में बिहार के बच्चे मप्र से बेहतर हैं। इस संबंध में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह और राज्य शिक्षा केन्द्र के डायरेक्टर हरजिंदर सिंह से फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
मिजोरम में सबसे ज्यादा बच्चे छोड़ते हैं स्कूल
देश भर के 28 राज्यों में शाला त्यागी बच्चों का औसत 7.9 फीसदी है। इसमें मध्य प्रदेश में 15-16 वर्ष की उम्र के 14.3 फीसदी बच्चे शाला त्यागी हैं। पहले स्थान पर 15.4 प्रतिशत के साथ मिजोरम का नाम है। वहीं आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में सबसे कम शाला त्यागी बच्चे मिले हैं।
प्रदेश के स्कूलों में सुविधाओं की स्थिति
- 18% स्कूलों में पेयजल की कोई सुविधा नहीं है।
- 26.3% स्कूलों में शौचालय प्रयोग लायक नहीं है।
- 58% स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय प्रयोग लायक हैं।
- 5% स्कूलों में कंप्यूटर हैं पर कोई उपयोग नहीं।
- 38% स्कूलों के खुद के भवन नहीं है।
- 90.4% स्कूलों में बिजली कनेक्शन हैं।
प्राथमिक शाला में यदि शिक्षक को पूर्व की भांति स्वतंत्रता पूर्वक सिर्फ पढ़ाने दिया जाए तो मध्यप्रदेश में शिक्षा का स्तर पुन: सुधर सकता है। वर्षभर बेवजह के प्रशिक्षण, नवाचार के नाम पर नित नए प्रयोग लादना, शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य से प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का स्तर गिरा रहे हैं।
-राकेश दुबे, वरिष्ठ शिक्षक
अधिकांश स्कूल शिक्षक विहीन हैं। जो शिक्षक हैं भी तो वह मुख्यालय में बाबूगिरी कर रहे हैं। ऐसे में शिक्षा का स्तर नीचे जाना लाजमी है। वर्षभर ट्रेनिंग व अन्य कामों के नाम पर शिक्षकों को व्यस्त रखा जाता है। यदि यही कार्य गर्मी की छुट्टियों में किया जाए तो शिक्षा का स्तर काफी सुधार सकता है।
-रमाकांत पांडे, शिक्षाविद
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