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एक गांव ऐसा, जहां कोर्ट नहीं, पंचायत सुलझाती है विवाद

सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य ग्राम बरेलीपार (माल) का है मामला : नहीं लगाने पड़ते थाने के चक्कर

जितेंद्र चंद्रवंशी/जबलपुर। आपने अक्सर देखा होगा कि पति-पत्नी या पारिवारिक विवाद होने पर व्यक्ति हजारों-लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी सालों तक कोर्टक चहरी में चप्पलें घिसते रहते हैं। लेकिन सिवनी जिले का एक ऐसा गांव, जहां यदि किसी व्यक्ति का विवाद हो जाए या पति-पत्नी के बीच झगड़े हो जाय तो वे थाने या कोर्ट पहुंचने के बजाय गांव में पंचायत बैठाते हैं, जिसका निराकरण गांव के मुकद्दम और पंच करते हैं। सिवनी जिले की ग्राम पंचायत र्इंदावाड़ी के आदिवासी गांव बरेलीपार (माल) में पिछली कई पीढ़ियों से किसी विवाद का निपटारा करने गांव में पंचायत बैठाई जाती है। फिर सभी पंचों की बात गांव के मुकद्दम के समक्ष रखी जाती है, यहां होने वाला फैसला मान्य होता है।

आरोपी से मिली राशि विकास में करते हैं खर्च

गांव के पंच बचनलाल कुमरे ने बताया पहले किसी का विवाद होता था तो उनको पंचायत द्वारा निपटारा करते हुए 50-100 रुपए की सजा सुनाई जाती थी। दण्ड के रूप में जो राशि मिलती थी उससे गांव खाना खाता था। फिर इस प्रथा को बंद करके उस राशि से समाज के लिए बर्तन आदि खरीदे जाने लगे। साल भर में जो राशि एकत्रित होती है, उसका उपयोग किसी गरीब परिवार के सदस्य की बीमारी में भी किया जाता है।

बहुत पुरानी है यह प्रक्रिया

हमारे गांव में हमारे दादा- परदादा के समय से यह प्रक्रिया चली आ रही है । इस प्रक्रिया के अनुसार कि जब किसी व्यक्ति का परिवार या फिर किसी से जमीनी विवाद हो जाए तो वे थाने नहीं जाते हैं। बल्कि गांव में ही पंचायत बैठाकर मामले का निपटारा कर लिया जाता है। -किशन पुसाम, मुकद्दम

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