
इंदौर। शहर के 69 वर्षीय टाइल्स कारोबारी सुरेंद्र पोरवाल ने मरणोपरांत अंगदान कर कई जरूरतमंदों को जीवनदान दिया। उनके अंगदान के तहत उनके दोनों हाथ मुंबई के 28 वर्षीय व्यक्ति को ट्रांसप्लांट किए गए, जिससे युवक की जिंदगी आसान हो गई है। ब्रेनडेड व्यक्ति के दोनों हाथ, किडनी, लिवर, आंखें और स्किन एक साथ डोनेट की गई। उनकी बॉडी से मंगलवार को 8 लोगों को नई जिंदगी मिली।
अधिकारियों ने बताया कि इंदौर के टाइल्स व्यापारी सुरेंद्र पोरवाल को 23 दिसंबर को अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बाद दिमागी रूप से मृत घोषित कर दिया था। इससे पहले दो साल पहले ब्रेन हेमरेज के चलते उनका ऑपरेशन किया गया था। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके मरणोपरांत अंगदान किया जाए। उनकी इस इच्छा को पूरा करते हुए उनके परिवार ने खुद आगे आकर यह सराहनीय कदम उठाया।
दोनों हाथों का ट्रांसप्लांट मुंबई में सफल
इंदौर सोसायटी फॉर ऑर्गन डोनेशन के संस्थापक सचिव डॉ. संजय दीक्षित ने बताया कि पोरवाल के दान किए गए दोनों हाथ मुंबई के 28 वर्षीय व्यक्ति को ट्रांसप्लांट किए गए। यह युवक कुछ साल पहले बिजली का झटका लगने के कारण अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करने में असमर्थ हो गया था। विशेष उड़ान के माध्यम से भेजे गए इन हाथों का मुंबई के एक निजी अस्पताल में सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया गया।
स्थानीय मरीजों को भी मिला नया जीवन
कारोबारी पोरवाल के दान किए गए दोनों हाथ, यकृत (लिवर) और दोनों गुर्दे (किडनी) को विशेष उड़ान के माध्यम से मुंबई भेजा गया, जहां इसे एक अन्य मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित किया गया। उनके दोनों गुर्दे स्थानीय अस्पतालों में भर्ती दो मरीजों को ट्रांसप्लांट किए गए। इसके अलावा, उनकी त्वचा और आंखें भी दान की गईं, जिससे अन्य जरूरतमंदों को मदद मिलेगी।
रेड कॉरपेट बिछाकर दिया सम्मान
सुरेंद्र पोरवाल के अंगदान के बाद उनकी पार्थिव देह को मंगलवार को स्थानीय अस्पताल में भावभीनी विदाई दी गई। अस्पताल परिसर में स्ट्रेचर पर रखी उनकी देह को एम्बुलेंस तक ले जाने के लिए रेड कॉरपेट बिछाया गया। डॉक्टरों और अस्पताल कर्मियों ने कतार में खड़े होकर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। यह दृश्य भावनात्मक और प्रेरणादायक था।
अंगदान का प्रेरणादायक कदम
इंदौर में अंगदान को बढ़ावा देने वाले सामाजिक संगठन “मुस्कान” के कार्यकर्ता संदीपन आर्य ने इसे एक प्रेरणादायक कदम बताते हुए कहा कि इस दान से कई जिंदगियां बचाई जा सकीं। सुरेंद्र पोरवाल का यह कदम न केवल जरूरतमंदों के लिए आशा की किरण बना, बल्कि समाज को अंगदान के प्रति जागरूक करने में भी एक मील का पत्थर साबित हुआ।