ताजा खबरभोपाल

बच्चों को उनकी पसंद के वेकेशंस एंजॉय करने का मौका दें, फिर वे आपकी चॉइस का भी सम्मान करेंगे

विशेषज्ञ बोले-बच्चों को हॉली-डे एंग्जाइटी से बचाने उनसे पूछकर बनाएं घूमने का प्लान

 विंटर वेकेशंस की शुरुआत हो चुकी हैं और फैमिलीज घूमने-फिरने निकलने की तैयारी में हैं। क्रिसमस से लेकर नए साल के आने तक अधिकांश लोग वेकेशंस एंजॉय करते हैं। सालभर जिन जगहों को मोबाइल वीडियो में देखते हैं, उन जगहों पर पहुंच जाने का मन करता है तो कभी अपने रिश्तेदारों के यहां जाते हैं, जिनके साथ वक्त बिताए लंबा समय बीत चुका है, लेकिन देखने में आता है कि बच्चे छुट्टियों के दौरान पैरेंट्स की ओवर शेड्यूलिंग के कारण हॉली डे एंग्जाइटी से जूझते हैं क्योंकि कई बार वे कुछ जगहों पर उनके साथ जाना नहीं चाहते या उन्हें पैरेंट्स की गेदरिंग में बोरियत का अहसास करते हैं। इस बारे में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट स्टीफन व्हाइट साइड की पुस्तक एंग्जाइटी कोच भी आने वाली है। वहीं पीडियाट्रिक साइकोलॉजिस्ट से जाना कि हॉली-डे एंग्जाइटी से न जूझना पड़े इसके लिए किस तरह पैंरेंट्स वेकेशंस प्लान करें।

बच्चों से डिस्कस करके बनाए हॉली-डे प्लान

बाल मनोविशेषज्ञ सोनल छतवानी कहती हैं, बच्चों से पूछकर हॉली-डे प्लान बनाएं। इस दौरान बच्चों का पूरा शेड्यूल बदलता है। पैरेंट्स की ओवर शेड्यूलिंग का असर यह होता है कि बच्चे कई बार काफी थका हुआ महसूस करते हैं। हम इसे इस तरह पहचान सकते हैं कि सीधे-सीधे पूछने के जवाब में चुप्पी, आंसू आना या अचानक चिड़चिड़ापन एंग्जाइटी का संकेत देता है। वे जैसे अपनी वैकेशंस एंजॉय करना चाहते हैं, उन्हें करने का मौका दें, फिर देखिए वे आपकी पसंद का भी सम्मान करेंगे।

सोने-जागने का शेड्यूल डिस्टर्ब नहीं करती

मेरी बेटी की छुट्टियां शुक्रवार से शुरू हो जाएंगी, इन 10 दिनों में हम घूमने-फिरने जरूर जाते हैं लेकिन जब मुझे लगता है कि अब वो थक चुकी है तो हम घर वापस आ जाते हैं। मैं उनसे सोने और जागने के समय को डिस्टर्ब नहीं करती। मैं उतना ही प्लान बनाती हूं जितने में उसे कंफर्टेबल महसूस हो। -श्वेता सिंह, होममेकर

एडवेंचर फील कराएं, पसंद की चीजें बैकपैक में रखने दें

कई बार बच्चे अपनी पसंद की चीजें साथ लेकर जाना चाहते हैं तो उन्हें अपने बैकपैक में उन चीजों को रखने दें, जैसे कोई स्पोर्ट्स का सामान या बोर्ड गेम आदि। बच्चों को यदि ड्राइंग का शौक है तो उन्हें छोटी पेंट बुक रखने को कहें ताकि वे किसी जगह बैठकर उस जगह की स्केचिंग कर सकें। बच्चों को उनकी टू-डू-लिस्ट बनाने या इंटरनेट पर जाकर उन जगहों के लोकल फूड या साइट सीन के अनसीन लोकेशन सर्च करने को कह सकते हैं, जिससे उन्हें एडवेंचर का अहसास हो। यदि बच्चे इस उम्र के हैं कि वे अकेले घर पर रह सकते हैं तो उन्हें अपने साथ जबरदस्ती लेकर न जाएं। सोशल गेदरिंग में ले जाने से पहले बच्चों की काउंसलिंग करें कि लोगों से मिलना-जुलना क्यों जरूरी है। हाल में मैं अपने नातियों को आगरा ऐतिहासिक जगह दिखाने ले गई, लेकिन ताजमहल और आगरा का किला देखने के बाद फतेहपुर सीकरी जाने का प्लान कैंसिल कर दिया क्योंकि पूरा दिन बाहर घूमते रहने से बच्चे थक गए हैं, तो हमने आउटिंग को सीमित किया। अपने बच्चों की इच्छा और उनकी घूमने-फिरने की क्षमता को देखते हुए यदि कहीं कुछ कैंसिल भी करना पड़े तो न हिचकें। -डॉ. शिखा रस्तोगी, बाल मनोविशेष

उसकी बात मानते हैं, तो वो हमें भी सपोर्ट करती है

मेरी बेटी को जिन दोस्तों के घर जाना पसंद है, हम उसे उनके घर लेकर जाते हैं तो फिर वो हमारे फ्रेंड्स के घर जाने को तैयार हो जाती है। बच्चों को उनकी पसंद की जगह पर ले जाने पर वे आपको भी सपोर्ट करते हैं और साथ में जाते हैं। छुट्टियों में वो घर में रहना ज्यादा पसंद करती है तो हम उसे साथ चलने पर जोर नहीं देते और उसके साथ ही घर पर रूकते हैं। -ज्योति बक्शी, होममेकर

संबंधित खबरें...

Back to top button