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नवरात्रि स्पेशल : इस सिद्ध पीठ में कोई खड़ा नहीं हो सकता माता की प्रतिमा के सामने, पूरी होती है हर मनोकामना

नवरात्रि के पावन अवसर पर हम आज आपको दर्शन कराने जा रहा हैं एक ऐसे देवी धाम के जिसे राजसत्ता की देवी कहा जाता है। इस शक्तिपीठ को लेकर अलग अलग मान्यताएं हैं, यानी जितने मुंह उतनी बातें… कोई इन्हें पालनहार कहता है तो कोई इन्हें सुखदात्री, किसी की नजर में ये शक्ति स्वरूपा हैं तो किसी के लिए सिद्धीदात्री, किसी के लिए ये शत्रु विनाशक हैं तो किसी के लिए सुखदाता… जी हां हम बात कर रहे एमपी के दतिया में विराजी पीतांबरा माता की, जिन्हें आस-पास के इलाकों में “माई” कह कर संबोधित किया जाता है।

चतुर्भुज रूप में है माता पीतांबरा की मूर्ति

किसी समय यहां गिनती के लोग आते थे, लेकिन अब यहां हर साल लाखों की तादाद में भक्त आते हैं। केवल भारत ही नहीं विदेश से भी भक्त यहां पहुंचते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है इस शक्तिपीठ की लगातार बढ़ती ख्याति और लोगों की इस मंदिर में बढ़ती श्रद्धा। हालांकि ये मंदिर केवल 80 साल पुराना बताया जाता है लेकिन इस पीठ की स्थापना को लेकर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। सामान्य जानकारी के मुताबिक इस मंदिर की स्थापना का श्रेय तेजस्वी स्वामी को जाता है जिन्होंने 1935 में इस मंदिर की आधारशिला रखी थी। ऐसा माना जाता है कि स्वामी जी की प्रेरणा से ही मंदिर में चतुर्भुज रूप में माता पीतांबरा की मूर्ति स्थापित की गई। इस चतुर्भुजी माता के एक हाथ में गदा, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे में वज्र और चौथे हाथ में दैत्य की जीभ है।

छोटी सी खिड़की से किए जाते हैं मां पीतांबरा के दर्शन

यहां आने वालों के लिए एक और मान्यता का पालन करना बेहद जरूरी है। यहां विराजित मां पीतांबरा के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से ही किए जाते है… यहां अन्य धर्मस्थलों की तरह श्रद्धालुओं को देवी मां की प्रतिमा के सामने खड़ा होने की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही कोई भी मां पीतांबरा की इस प्रतिमा को छू नहीं सकता। अब नाम की बात कर लेते हैं। जिस प्रकार माता का नाम पीतांबरा है, उसी प्रकार इनका श्रृंगार हमेशा पीले वस्त्रों में ही होता है। इन्हें सदैव पीले फूल ही अर्पित किए जाते है। यहां माता को भोग भी हमेशा पीले रंग की मिठाई का ही लगाया जाता है।

पीतांबरा को कहते हैं राजसत्ता की माता

मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है। यही वजह है कि राज सत्ता से जुड़े और उसकी इच्छा रखने वाले यहां आकर गोपनीय या सार्वजनिक रूप से मां की अर्चना एंव पूजा कराते हैं। इसका यही मकसद होता है कि वे मां को प्रसन्न करके मनवांछित सफलता प्राप्त कर सकें। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि माता पीतांबरा का अनुष्ठान करने से कोर्ट-कचहरी और मुकदमों मे भी सफलता हासिल होती है। इतनी ही नहीं मां की आराधना करने से शत्रु पूरी तरह से पराजित हो जाते हैं। इसी कारण यहां अलग-अलग यज्ञ और अनुष्ठान कराए जाते हैं… और अब तो यहां भगवान जगन्नाथ की तर्ज पर माता का रथ भी निकाला जाता है, जिसमें शामिल होने के लिए हजारों की तादाद में लोग दतिया आते हैं।

चीन युद्ध के समय हुआ था महायज्ञ

मां के मंदिर के साथ ही यहां आपको खंडेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं। मंदिर परिसर के आंगन में विराजे महादेव को महाभारत काल का माना जाता है। लेकिन इस मंदिर में विराजमान माता धूमावती के भी दर्शन केवल किस्मत वालों को ही होते हैं क्योंकि इस मंदिर के कपाट केवल आरती के समय ही खोले जाते है। एक और बेहद खास बात मां धूमावती को नमकीन स्वाद बहुत भाता है, इसलिए उन्हें मंगोड़े, कचोरी, समोसे का भोग लगाया जाता है। वैसे मां की महिमा दुनिया भर में होने की वजह राजनीतिक भी है। 1962 में चीन से युद्ध रोकने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने इसी मंदिर में महायज्ञ कराया था। देश की रक्षा को ध्यान में रखते हुए यहां 51 कुंडीय महायज्ञ 11 दिनों तक चला और अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। यहां लगी पट्टिका पर इसका उल्लेख है। ऐसे में जब भी देश पर विपत्ति आती हैं, तब गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य होता है।

(इनपुट – नितिन साहनी)

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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