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नवरात्रि स्पेशल :  विजयासन धाम सलकनपुर… जहां भक्तों की हर कामना होती है पूरी, 400 सालों से प्रज्वलित है अखंड ज्योति 

धर्म डेस्क। जमीन से 400 फीट ऊपर मां विंध्याचल की गोद में बैठीं मां विजयासन का ये धाम सलकनपुर के नाम से जाना जाता है। सीहोर जिले के रेहटी तहसील में स्थित माता का यह दरबार भक्तों की श्रद्धा का अटूट केंद्र है। यह लोगों की आस्था ही है जो इस पावन धाम को 52वें शक्तिपीठ के रूप में माना जाने लगा है। नर्मदा के तट के नजदीक स्थित पहाड़ की गोद में बैठी मां विजयासन का प्रताप है कि हर दिन हजारों की तादाद में भक्त माता के दरबार में दर्शन के लिए दौड़े चले आते हैं। इतना ही नहीं नवरात्रि के पावन पर्व पर तो यह संख्या हर दिन एक लाख को भी पार कर जाती है।

पर्वत के शिखर पर विराजित हैं मां विजयासन

सुबह चार बजे पक्षियों के कलरव से पहले ही घंटियों का स्वर पूरे इलाके में गुंजायमान होने लगता है। ये वो समय होता है जब माता की मंगलारती की जाती है। इस प्रार्थना के जरिए निद्रा में लीन माता रानी को जगाकर जनकल्याण की कामना की जाती है। इन पावन पलों का हिस्सा बनने रोज हजारों भक्त मंदिर के प्रांगण में कतार से खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते नजर आते हैं। अब पर्वत के शिखर पर विराजित मां के दरबार में पहुंचने का रास्ता पहले जितना कठिन नहीं है। विजयासन धाम तक जाने के लिए भक्त या तो 1400 से भी ज्यादा सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जा सकते हैं, या फिर रोप-वे का सहारा ले सकते हैं। इसके साथ ही अब एक नया रास्ता बनकर भी तैयार हो गया है, जो आपको घुमावदार रास्तों से होकर मंदिर के मुख्य द्वार तक ले जाता है। हालांकि नवरात्रि के दौरान आने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए इस रास्ते को 9 दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है।

मनौती पूरी होने पर पैदल दर्शन करने आते हैं भक्त

यह पौराणिक मान्यता है कि, जो भी भक्त यहां सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक जाएगा, उसकी हर मुराद पूरी होगी। यही वजह है आज भी अधिकांश लोग सीढ़ियों के रास्ते ही मां के दरबार तक की कठिन और दुर्गम चढ़ाई चढ़ते दिखाई देते हैं। इतना ही नहीं मां की महिमा के कारण ही हजारों की संख्या में लोग पैदल ही आस-पास के इलाकों से मां के दर्शन करने आते हैं। इस पवित्र स्थान के बारे में यह भी प्रसिद्ध है कि जो भी मां के सामने मनौती पूरी होने पर पैदल दर्शन के लिए आने की बात कहता है, उसकी मनोकामना सबसे पहले पूरी होती है। यही वजह है कि मां के दरबार में आने वाले लोगों में आज भी हजारों की संख्या में पैदल यात्रियों की होती है जो आस-पास के इलाकों से मंदिर तक जत्थों के रूप में पहुंचते हैं।

400 साल से प्रज्वलित है अखंड ज्योति

मां विजयासन धाम की एक ख्याति और भी है। यह दुनिया का एकमात्र स्थान है जहां 400 साल से अखंड ज्योति प्रज्वलित हैं। इनमें एक ज्योति नारियल के तेल और दूसरी घी से जलती है। इन जलती हुई ज्योतियों के पीछे भावना है कि, यह दोनों सूर्य और चंद्रमा की तरह अटल हैं। यहां इन साक्षात ज्योति को भी देवी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के अंदर ही भैरव बाबा स्थापित हैं और उनके सामने भी एक धूनी है, जो पिछले 400 सालों से लगातार प्रज्वलित है। कहते हैं कि इस धूनी को स्वामी भद्रानंद और उनके शिष्यों ने जलाया था। इस मंदिर में इसी धूनी की राख को आरती के बाद प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा भी जाता है।

जानें कैसा पड़ा नाम विजयासन

मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माता की मूर्ति सैकड़ों वर्ष पुरानी है। पौराणिक मान्यता है कि इसी स्थान पर मां दुर्गा ने महिषासुर मर्दिनी का रूप धारण कर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था। जिसके बाद माता ने कई सालों तक विजयी आसन की मुद्रा में तपस्या की थी। तभी से उनका नाम विजयासन देवी पड़ा। इस मंदिर को बनवाने के पीछे भी एक बेहद रोचक और अनोखी कहानी है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस देवी धाम को कुछ बंजारों ने बनवाया था। किवदंती के अनुसार एक बार जब पशुओं का व्यापार करने वाले कुछ बंजारे यहां रुके हुए थे तभी उनके पशु अचानक गायब हो गए। पशुओं को खोजने के लिए निकले बंजारों को एक छोटी सी लड़की मिली। उस छोटी लड़की ने बंजारों को माता से मनोकामना मांगने को कहा। इस पर बंजारों ने कहा कि हम नहीं जानते कि यहां पर माता का स्थान कहां है। तब उस लड़की ने एक पत्थर फेंका। उसने जिस जगह पर पत्थर फेंका, वहां माता के दर्शन हुए। इसके बाद बंजारों ने मातारानी से अपने पशु मिलने की मनोकामना मांगी। कुछ समय बाद ही बंजारों को खोए हुए पशु मिल गए और बंजारों ने वहां पर छोटा सा मंदिर बनवा दिया। इसके बाद इसकी ख्याति देश ही नहीं पूरे विश्व में फैल गई।

लगता है पशुओं का मेला

यही वजह है कि हर साल फरवरी महीने में सलकनपुर में माघ मेला लगता है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां विजयासन माता के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं। इस मेले में बड़ी संख्या में पशुओं को खरीदने और बेचने वाले भी आते हैं। वैसे चलते-चलते आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अब सलकनपुर धाम की लोकप्रियता का पैमाना यह है कि यहां हर रोज एक न एक वीआईपी आकर माता के दरबार में मत्था टेककर अपनी मनोकामना मांगता है। यही वजह है कि इस ठेठ ग्रामीण अंचल में स्थायी तौर पर एक जगह हेलीपैड तक बना हुआ है।

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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