इंदौर। अब संघ की शाखाओं में मूक-बधिर भी साइन लैंग्वेज में प्रार्थना कर सकेंगे। बुधवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इंदौर में साइन लैंग्वेज में संघ की प्रार्थना- नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, लॉन्च की। ये प्रार्थना इंदौर में 5 साल में बनकर तैयार हुई है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती संस्कृत के शब्दों को लेकर थी।
साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट ज्ञानेंद्र पुरोहित और मोनिका पुरोहित ने प्रार्थना को तैयार किया है। दोनों ने भागवत के सामने मूक-बधिरों के लिए संघ की प्रार्थना का प्रजेंटेशन दिया। पुरोहित मूक-बधिरों के लिए आनंद सर्विस सोसायटी नाम की संस्था चलाते हैं। उन्होंने संघ प्रमुख से मुलाकात में देशभर में मूक-बधिर और दिव्यांगों के लिए कार्य करने पर भी चर्चा की।
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पुरोहित बोले- हिम्मत नहीं हारी और प्रार्थना तैयार कर ली
ज्ञानेद्र पुरोहित कहते हैं- ‘ये प्रार्थना उन्होंने निजी अनुभव के बाद तैयारी की है। जब वे मूक-बधिर भाई को लेकर संघ की शाखाओं में जाते थे तो वो वहां प्रार्थना को वो समझ नहीं पाते थे और पूछते थे कि ये लोग क्या गा रहे हैं, तभी से मेरे दिमाग में आया कि संस्कृत की इस प्रार्थना को मूक-बधिरों के लिए कैसे तैयार किया जाए। हिंदी और अंग्रेजी को तो मूक-बधिर इशारों में समझ लेते हैं लेकिन संस्कृत को समझना मुश्किल था। मैंने हिम्मत नहीं हारी और प्रार्थना को साइन लैंग्वेज में तैयार कर दिया। इसे संघ प्रमुख ने ऑफिसियली लॉन्च भी कर दिया।’
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चुनौती थी- मूल भाव ना बदल जाएं: मोनिका
मोनिका पुरोहित का कहना था कि पूरी प्रार्थना संस्कृत में होने के कारण किसी ने इसे सांकेतिक भाषा में बदलने के बारे में नहीं सोचा था। ये बहुत कठिन था, क्योंकि हम ये सोचते थे- इसके जो मूल भाव हैं वो न बदल जाएं। इसमें देशभक्ति और देश के प्रति प्यार और सम्मान का भाव है। इसलिए हमने उसी भाव को ध्यान में रखा और उसी के अनुरूप संकेतों में बनाया।
मूक-बधिर और दिव्यांग को लेकर संघ प्रमुख से चर्चा
दरअसल, इंदौर में देश का एकमात्र मुक-बधिर थाना स्थापति है, इसे आनंद सर्विस सोसायटी संचालित करती है। देशभर में मूक-बधिर थानों को खोलने पर भी संघ प्रमुख से साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट की बातचीत हुई है। मूकबधिर और दिव्यांगों पर होने वाले अत्याचार और उन्हें मिलने वाले न्याय को लेकर चर्चा की।
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संघ प्रमुख दो दिन के दौरे पर इंदौर आए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत 2 दिवसीय दौर पर इंदौर आए हैं। वे यहां 21 और 22 सितंबर को रुके। उनका यह प्रवास मालवा प्रांत के केंद्र इंदौर में रहा। कोरोना प्रोटोकॉल को देखते हुए कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं रखा गया। ना ही बड़ी बैठक का आयोजन किया गया।