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डमरू, शंख और गीत-संगीत के साथ ही जापानी शैली में सुनाईं कहानियां

स्टोरी टेलिंग : भोजपुर क्लब में स्टोरी टेलिंग फेस्ट में 200 लोगों ने लिया भाग

प्रीति जैन- 2008 में नासिक में बच्चों के लिए आयोजित एक समर कैंप में दीपा ने पहली बार प्रस्तुति दी थी। एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नृत्यांगना जो वायलिन भी बजाती हैं, उन्होंने महसूस किया कि प्रदर्शन कलाओं ने उनकी संवेदनशीलता को पोषित किया है। अंतर्राष्ट्रीय कथाकार दीपा किरण वह कहती हैं, मैं मंच पर सहजता से कहानी कहने के लिए अपने शरीर का उपयोग करने में सहज थी। भोजपुर क्लब में आयोजित भोपाल के पहली स्टोरी टेलिंग फेस्ट में दीपा अपनी कहानियों को झंकार, शंख, डमरू, डफ आदि के साथ प्रस्तुत करने के लिए मौजूद थीं। उन्होंने कमली नामक जिज्ञासु व चंचल बच्ची की कहानी सुनाई, जो अपनी पड़ोसन द्वारा गाए मधुर गीतों पर मोहित है। इस मौके पर आस्था टोंगिया बड़जात्या, चहक चुग श्रीवास्तव, कर्णिका सिंह शर्मा और यास्मीन अनवर ने भी स्टोरी टेलिंग की।

पिक्चर कार्ड के साथ सुनाई कहानी

जानी-मानी स्टोरी टेलर ज्योति पांडे ने लगभग 20 बच्चों को जापानी स्टोरी टेलिंग कला ‘कमीशिबाई’ का नमूना प्रस्तुत किया। कामीशिबाई जापानी स्ट्रीट थिएटर का एक पारंपरिक रूप है जिसमें लकड़ी के बॉक्स के भीतर रखे पिक्चर कार्ड के साथ कहानी सुनाई जाती है। बच्चों की कहानी की किताबों से अलग रखते हुए, इसमें पाठ को पिक्चर कार्ड के पीछे लिखा जाता है ताकि बच्चों को चित्र दिखाते समय कहानी को आसानी से पढ़ा जा सके।

ज्योति ने कमीशिबाई जापानी शैली में रोचक ढंग से पेश की कहानी

जंगल और गांव वाले अपनी-अपनी जगह पर शांति से रहते थे लेकिन एक दिन जंगल में आ लग जाती है। तब भालू, जगुआर और एंट ईटर गांव में आ जाते हैं, तब गांव वाले भालू को एक डंडे पर लटकाकर जंगल में वापस भेज आते हैं। एंट ईटर को चीटियां दिखाकर जंगल में ले जाते हैं, लेकिन अब किसी की हिम्मत नहीं थी कि जगुआर को वापस जंगल में छोड़ आए। तमाम प्रयास विफल हो जाते हैं क्योंकि वो गुर्राने लगता है। गांव में रहने वाले एक लड़के के गीत जंगल में रहने वाले जानवरों को पसंद थे। जगुआर भी इसे पसंद करता था, मुरली नाम के उस लड़के ने गीत गाना शुरू किया, तो जगुआर पलट गया, तब लड़के ने देखा कि उसके पैर में लकड़ी का टुकड़ा फंसा था, जिसकी वजह से वो गुर्राता। लड़के ने सावधानी से वो टुकड़ा निकाल दिया। अपने गले का स्कार्फ उसके पैर में बांधा। फिर मुरली जगुआर के आगे-आगे गाना गाता चलता गया और इस तरह जगुआर को अपने संगीत के प्रभाव से जंगल में छोड़़ आया।

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