नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को पूरे विधि-विधान से नए संसद भवन का उद्घाटन किया। पूजन के बाद तमिलनाडु के मठों से आए अधीनम ने PM मोदी को सेंगोल सौंपा। जिसे दंडवत प्रणाम के बाद पीएम मोदी ने संसद में स्पीकर की कुर्सी के बगल स्थापित किया। नए भवन में लोकसभा में 888 और राज्यसभा में 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। नई संसद को लेकर देश में राजनीति भी खूब हुई, इसका कई विपक्षी दलों ने विरोध किया और उद्घाटन समारोह का बहिष्कार भी किया।
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नई संसद में सर्वधर्म सभा का आयोजन
देश की नई संसद का उद्घाटन होने के बाद पार्लियामेंट परिसर में सर्वधर्म सभा का आयोजन किया गया। जिसमें अलग-अलग धर्मों के विद्धानों और गुरुजनों ने अपने धर्म के बारे में विचार रखें और पूजा की। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और पूरी केंद्रीय कैबिनेट मौजूद रही। इस सर्वधर्म सभा में बौद्ध, जैन, पारसी, सिख समेत कई धर्मों के धर्मगुरु ने अपनी-अपनी प्रार्थनाएं कीं।
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इन पार्टियों ने किया उद्घाटन समारोह का बहिष्कार
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK)
- आम आदमी पार्टी
- शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)
- समाजवादी पार्टी
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI)
- झारखंड मुक्ति मोर्चा
- केरल कांग्रेस (मणि)
- विदुथलाई चिरुथिगल कच्ची
- राष्ट्रीय लोकदल (RLD)
- तृणमूल कांग्रेस (TMC)
- जनता दल (यूनाइटेड) (JDU)
- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP)
- भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPIM)
- राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
- इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग
- नेशनल कॉन्फ्रेंस
- रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी
- मारुमलार्थी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (MDMK)
बायकॉट की बताई वजह
सरकार लोकतंत्र को खतरे में डाल रही है और निरंकुश तरीके से नई संसद का निर्माण किया गया। इसके बावजूद हम इस महत्वपूर्ण अवसर पर अपने मतभेदों को दूर करने को तैयार थे। लेकिन जिस तरह से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए नई संसद बिल्डिंग का उद्घाटन प्रधानमंत्री से कराने का निर्णय लिया गया है। वह राष्ट्रपति पद का न केवल अपमान है, बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला है।