नई दिल्ली। हर साल यूनाइटेड नेशंस की ओर से 16 सितंबर को इंटरनेशनल डे फॉर द प्रिवेंशन ऑफ द ओजोन लेयर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को ओजोन परत के प्रति जागरूक करना है। यह इवेंट 1987 के मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की याद दिलाता है, जिसे 24 देशों ने साथ आकर बनाया था। इसमें ऐसे पदार्थों का इस्तेमाल बंद करने का वचन लिया गया था, जिससे ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है। इंसानों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने वाली ओजोन परत के लिए कोरोना लॉकडाउन राहत वाला समय कहा जा सकता है। देश में लॉकडाउन का जो असर हुआ, उसका एक बड़ा फायदा ओजोन परत को भी मिला है।
वर्ल्ड ओजोन डे 2021 की थीम
वर्ल्ड ओजोन डे 2021 की थीम इस साल, “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल – हमें, हमारे भोजन और टीकों को ठंडा रखना” है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल बहुत कुछ करता है – जैसे कि जलवायु परिवर्तन को धीमा करना और ठंडे क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने में मदद करना, जो खाद्य सुरक्षा में योगदान देता है। इस साल की थीम को 197 देशों द्वारा मंजूरी दी गई है।
संकट में पड़ सकता है जीवन
ओजोन परत, ओजोन अणुओं की एक परत है जो 10 से 50 किलोमीटर के बीच के वायुमंडल में पाई जाती है। ओजोन परत पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने का काम करती है। ओजोन परत के बिना जीवन संकट में पड़ सकता है, क्योंकि अल्ट्रावायलेट किरणें अगर सीधे धरती पर पहुंच जाए तो ये मनुष्य, पेड़-पौधों और जानवरों के लिए भी बेहद खतरनाक हो सकती हैं। ऐसे में ओजोन परत का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है।
ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले कण कैसे बनते हैं?
वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब सूर्य की किरणों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओजोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है। वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाली कार्बन-मोनो-ऑक्साइड व दूसरी गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओजोन प्रदूषक कणों की मात्रा को बढ़ाती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, आठ घंटे के औसत में ओजोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
कैसे हुई वर्ल्ड ओजोन डे (World Ozone Day) की शुरुआत
16 सितंबर, 1987 को संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता के निवारण के लिए कनाडा के मांट्रियल शहर में दुनिया के 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसे ‘मांट्रियल प्रोटोकॉल’ कहा जाता है। इसकी शुरुआत एक जनवरी, 1989 को हुई। इस प्रोटोकॉल का लक्ष्य साल 2050 तक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों पर नियंत्रण करना था।प्रोटोकॉल के मुताबिक, यह तय किया गया था कि ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफसी) के उत्पादन और उपयोग को सीमित किया जाए, लेकिन इस पर बहुत ज्यादा अमल नहीं हुआ। जिससे इसके हानिकारक प्रभाव भी झेलने पड़े।
इसके बाद 19 दिसंबर, 1994 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया। 16 सितंबर 1995 को पहली बार विश्व ओजोन दिवस मनाया गया।