
होली का त्योहार उत्साह और उमंग से भरा होता है. फाल्गुन माह में आने वाला यह त्योहार रंगो और फूलों के बिना अधूरा है। मथुरा के बरसाना में विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली खेली जाएगी। बरसाना में नंदगांव के ग्वालों पर बरसाना की गोपियां लठ बरसाएंगी। लट्ठमार होली में मुख्यतः नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं।

ग्वालों पर लाठियों से प्रहार करेंगी गोपियां
ग्वालों के स्वागत में हाथ में लाठियां लिए लड़कियां तैयार मिलेंगी। लट्ठमार होली के दौरान हुरियारिनें (लड़कियां) नंदगांव के हुरियारों (लड़के) पर प्रेमपगी लाठियां बरसाएंगी। इसके बाद हुरियारे बड़ी कुशलता और बुद्धि से खुद को बचाते हुए लाठी के प्रहारों को अपनी ढालों पर झेलेंगे। बता दें कि पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है। ये साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
लट्ठमार होली कब है?
बरसाने में लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को खेली जाती है। जबकि नंद गांव में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को लठमार होली मनाई जाती है जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है। इस होली में गोपियां हुरियारों का लट्ठ और गुलाल दोनों से स्वागत करती हैं। इस साल बरसाने की लट्ठमार होली आज यानी 11 मार्च को खेली जा रही है। वहीं नंदगांव की लट्ठमार होली 12 मार्च दिन शनिवार को खेली जाएगी। यह होली बरसाने की लाडली जी के मंदिर में खेली जाती है। इसके लिए निमंत्रण नंदगांव के नंद महल जाता है। निमंत्रण का स्वीकृति का संदेश शाम के समय लाडली जी के मंदिर जाएगा और फिर नंद गांव के हुरियारे बरसाने होली खेलने जाते हैं।
लट्ठमार होली का महत्व
कहते हैं श्री कृष्ण और उनके मित्र द्वापर युग में कई लीलाओं के लिए प्रसिद्ध थे। बाल्यकाल में राधा और गोपियों के साथ अनेक लीलाएं करते थे। ऐसे में जब भी वे राधा और गोपियों के साथ होली खेलने जाते थे तो उसने उन्हें काफी तंग भी किया करते थे। इसीलिए राधा जी और गोपियां डंडा लेकर श्री कृष्ण और ग्वालों के पीछे दौड़ती थीं। उनका स्वागत रंग और डंडों से किया जाता था इसलिए तभी से लट्ठमार होली खेलने की यह परंपरा चली आ रही है।
(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)