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चुनावी बहस बनी परिवार में कलह का कारण, साइकोलॉजिस्ट के पास आ रहे मामले

चुनाव का मानसिक असर : कोई टीवी बहस का हुआ दीवाना, तो किसी का दलबदल से टूटा दिल, नतीजा परिजन और दोस्त परेशान

प्रवीण श्रीवास्तव। भोपाल देश में लोकसभा चुनावों की लहर है। टीवी चैनल्स से लेकर गली मोहल्ले और परिवार में भी राजनीति की चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन राजनीति के प्रति यह प्रेम कई लोगों के दिमाग पर भी असर कर रहा है। कई लोग अपने पसंदीदा नेता या दल से मानसिक रूप से इतना जुड़ जाते हैं कि उनके खिलाफ कुछ सुनना ही नहीं चाहते। यह प्रेम सनक बन जाता है औरपीड़ित ऊलजुलूल हरकतें तक करने लगते हैं। ऐसे में इन लोगों को मानसिक रोग विशेषज्ञों का सहारा लेना पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति में कई बार यह लोग हिंसक भी हो जाते हैं और परिवार को भी परेशानी झेलनी पड़ती है।

केस 1

फार्मा कंपनी में काम करने वाले राकेश (परिवर्तित नाम) के रिटायर्ड पिता को टीवी पर चुनावी बहस देखने का शौक है। वो इससे इतने जुड़ जाते हैं कि परिवार को भूल जाते है। टीवी पर सिर्फ चुनावी बहस ही चलती है। कोई चैनल बदल दे तो वे बच्चों की पिटाई भी लगा देते हैं। परेशान बेटे ने अब मनोचिकित्सक से सलाह ली है।

केस 2

बिजनेस मैन अतुल सोलंकी राजनीति को खासा पसंद करते हैं। वे एक राजनीतिक दल और उसके एक नेता के कट्टर समर्थक हैं। बीते दिनों वह नेता अपनी पार्टी छोड़ दूसरी में शामिल हो गए, जिससे अतुल मानसिक रूप से परेशान हो गए। अब उस नेता के बारे में बात करने पर वे आक्रामक हो जाते हैं।

ऐसा क्यों होता है

विशेषज्ञों का कहना है कि जब व्यक्ति किसी से मानसिक रूप से अत्यधिक प्रेम या नफरत करता है तो उसके मानसिक क्रियाकलापों में बलवा होने लगता है। हमारे न्यूरोट्रांसमीटर जैसे सेरोटोनिन डोपामिन में असंतुलन हो सकता है जो की उत्तेजना, गुस्सा, नैराश्य एवं चिड़चिड़ेपन के रूप में हमें देखने को मिल सकता है। डोपामिन मूड और मांसपेशियों की गति को नियंत्रित करता है, वहीं सेरोटोनिन की कमी या अधिकता से मूड स्विंग जैसे अत्यधिक खुशी या गम का अनुभव होता है।

हमारे पास राजनीति के प्रभाव के चलते ऐसे कई मामले देखने को आए हैं। राजनीतिक डिबेट्स अब न केवल टीवी, बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में उपलब्ध हैं। लोग व्यक्तिगत रूप से अपने संबंध खराब तो कर ही रहे हैं साथ ही साथ मानसिक रूप से स्वयं को अस्वस्थ कर रहे हैं। – डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक 

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